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पुणे: प्रोजेक्ट्स से परेशान पिता का फूटा गुस्सा, बहस तेज

एजुकेशन डेस्क, मुस्कान कुमारी |

पुणे: पुणे के एक निवेशक और ऑरम कैपिटल के सह-संस्थापक नीतीन एस धर्मावत ने स्कूलों की शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठाते हुए इसे 'बेकार' करार दिया है। उन्होंने खुलासा किया कि उनका आठवीं कक्षा में पढ़ने वाला बेटा नियमित होमवर्क पूरा करने के बाद भी स्कूल प्रोजेक्ट्स पर आधी रात तक काम करता रहता है, क्योंकि अगले दिन सजा का डर रहता है। इस पोस्ट ने सोशल मीडिया पर छात्रों पर पड़ने वाले दबाव को लेकर गर्मागर्म बहस छेड़ दी है, जहां तीन लाख से ज्यादा लोगों ने इसे देखा और अपनी राय रखी।

धर्मावत ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक छोटा वीडियो शेयर करते हुए अपनी निराशा जाहिर की। उन्होंने लिखा, "स्कूल बेकार हैं। यह रात के 12 बज रहे हैं। आठवीं क्लास का बच्चा होमवर्क पूरा करने के बाद भी कुछ बकवास प्रोजेक्ट कर रहा है। इतना आतंक है कि अगर वह इसे नहीं करेगा तो उसे अपनी पसंदीदा पीई पीरियड में हिस्सा लेने नहीं दिया जाएगा। हर रोज वह 12-12:30 बजे तक जागता रहता है।"

उन्होंने आगे जोड़ा, "एक अभिभावक के तौर पर मैं इस सड़ी हुई व्यवस्था से इतना असहाय महसूस कर रहा हूं। जो चीजें मैं हमेशा खिलाफ था, अब अपने बच्चे के लिए उन्हें झेलना पड़ रहा है।"

यह पोस्ट वायरल हो गई और लोगों ने स्कूलों की पुरानी शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठाए। कई यूजर्स ने कहा कि ऐसे प्रोजेक्ट्स व्यर्थ हैं और छात्रों का समय बर्बाद करते हैं। एक यूजर ने कमेंट किया, "यह कहानी पूरे भारत में एक जैसी है। ये प्रोजेक्ट्स बेकार और व्यर्थ हैं, जो कभी असल जिंदगी में काम नहीं आते। इतनी बेवकूफ और पुरानी शिक्षा प्रणाली है और कोई इसे सुधारने को तैयार नहीं। वे छात्रों से जुड़े हर किसी का समय, ऊर्जा और संसाधन बर्बाद कर रहे हैं। इतनी कीमती मानव जीवन की बर्बादी।"

प्रोजेक्ट्स पर बहस: व्यर्थ काम या जरूरी सीख?

दूसरे यूजर ने सहमति जताते हुए कहा, "पूरी तरह सहमत... ज्यादातर प्रोजेक्ट्स न सिर्फ समय की बर्बादी हैं, बल्कि कागज जैसे कीमती संसाधनों की भी। इससे बेहतर होगा कि बच्चे उस समय में कुछ बुनियादी जीवन कौशल सीखें।"

एक अन्य व्यक्ति ने घर के समय पर जोर देते हुए लिखा, "घर का समय आदर्श रूप से परिवार से जुड़ने, घर के काम सीखने और सबसे महत्वपूर्ण दोस्तों के साथ खेलने के लिए होता है। प्रोजेक्ट रिपोर्ट्स असल में शिक्षकों की जिम्मेदारी का त्याग है, जो वे अभिभावकों पर डाल देते हैं। अगर इसमें कोई सीख है, तो शिक्षकों को स्कूल में ही करवाना चाहिए। नौकरियां पहले से ही तनावपूर्ण हैं और ऊपर से अभिभावक अनिवार्य रूप से बच्चों के साथ ये प्रोजेक्ट्स करते हैं।"

एक एक्स यूजर ने सुझाव दिया, "अब समय आ गया है कि हमारे बच्चे सतही स्कूल प्रोजेक्ट्स से आगे बढ़ें। शिक्षा उन्हें व्यावहारिक, कौशल-आधारित सीख से असल जीवन की चुनौतियों के लिए तैयार करे।"

धर्मावत की पोस्ट ने छात्रों पर स्कूलों के दबाव को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। कई अभिभावक और शिक्षाविद् अब शिक्षा प्रणाली में सुधार की मांग कर रहे हैं, जहां प्रोजेक्ट्स जैसे काम छात्रों की नींद और स्वास्थ्य पर असर डालते हैं। पुणे जैसे शहरों में जहां प्रतिस्पर्धा ज्यादा है, ऐसे मामले आम हो गए हैं, लेकिन सोशल मीडिया ने इसे राष्ट्रीय बहस बना दिया।

स्कूलों की इस प्रथा पर विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे असाइनमेंट्स का उद्देश्य रचनात्मकता बढ़ाना होता है, लेकिन अक्सर वे बोझ बन जाते हैं। धर्मावत का मामला उन हजारों अभिभावकों की आवाज बन गया है जो चुपचाप यह सब झेलते हैं।