
लोकल डेस्क, एन. के. सिंह |
जन सुराज अभियान के तहत कोटवा पहुँचे प्रशांत किशोर, कहा; अब बच्चों के भविष्य के लिए वोट कीजिए, जाति-धर्म के नाम पर नहीं
पूर्वी चंपारण के कोटवा में 'बिहार बदलाव यात्रा' के दौरान जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने जनता से सीधा और कटु सवाल पूछा — "अगर आपने वोट जाति और धर्म के आधार पर दिया, तो फिर गरीबी के लिए दोष किसे देंगे?" बारिश के बावजूद बड़ी संख्या में जुटी भीड़ को संबोधित करते हुए किशोर ने कहा कि आज़ादी के 75 साल बाद भी अगर बिहार पिछड़ा है, तो इसके लिए सबसे बड़ा कारण चुनाव में की गई गलत प्राथमिकताएँ हैं।
भोजपुरी में दिए अपने जोशीले भाषण में उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि वोट काम और गारंटी के आधार पर दिया जाए, न कि भावनात्मक और धार्मिक नारों पर। उन्होंने पूछा, “आपने 40 साल कांग्रेस को, 15 साल लालू को और फिर मोदी-नीतीश को आज़माया, लेकिन क्या आपकी हालत बदली?”
‘वोट से पहले काम, तभी समर्थन’: किशोर का नया एजेंडा
प्रशांत किशोर ने स्पष्ट किया कि वे वोट मांगने नहीं, बल्कि पहले काम करके लोगों का भरोसा जीतने आए हैं। उन्होंने कहा कि जब नेता सिर्फ चुनाव के वक्त वादे करते हैं और जीतने के बाद भूल जाते हैं, तो जनता को भी उन्हें सवालों के घेरे में लेना चाहिए।
उन्होंने आह्वान किया कि जनता अब उन नेताओं को चुनें जो बच्चों की पढ़ाई और युवाओं के रोजगार की ठोस योजना के साथ आएं। किशोर ने कहा, "अगर कोई नेता आपके बच्चों की पढ़ाई और भविष्य की गारंटी नहीं दे सकता, तो उसकी गर्दन पकड़िए, सवाल कीजिए।"
‘5 किलो अनाज और राम मंदिर से नहीं, स्कूल और फैक्ट्री से बदलता है भविष्य’
किशोर ने कहा कि बिहार की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि लोग 5 किलो राशन, जात-पात और धार्मिक नारों पर वोट कर देते हैं। उन्होंने पूछा — "क्या इन मुद्दों से आपके गाँव में स्कूल बना? कोई अस्पताल या फैक्ट्री आई?" उन्होंने गुजरात जैसे राज्यों का उदाहरण देते हुए कहा कि वहाँ विकास हुआ, लेकिन बिहार के युवा आज भी रोज़गार के लिए पलायन कर रहे हैं।
'गारंटी कार्ड' के जरिए विकास की नई सोच
प्रशांत किशोर ने वादा किया कि वे दिवाली और छठ के बाद 'गारंटी कार्ड' के ज़रिए लोगों को बताएंगे कि उनके बच्चों के लिए क्या योजनाएँ हैं। उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगर जनता उन्हें मौका देती है, तो बिहार को गरीबी से बाहर निकालने की ठोस रणनीति पर काम होगा।
अंत में उन्होंने लोगों से अपील की कि इस बार वोट देने से पहले एक सवाल खुद से पूछें — "क्या यह नेता मेरे बच्चों के भविष्य की गारंटी दे सकता है?" और अगर जवाब 'नहीं' है, तो फिर उसे वोट क्यों देना?