
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
बांग्लादेश में चुनावी सरगर्मी के बीच बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। चुनाव आयोग ने बुधवार को घोषणा की कि अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना अगले चुनाव में मतदान नहीं कर पाएंगी। आयोग ने उनका राष्ट्रीय पहचान पत्र (एनआईडी) “लॉक” कर दिया है, जिसके चलते वह चुनाव में मताधिकार से वंचित हो गई हैं।
आयोग के सचिव अख्तर अहमद ने राजधानी ढाका स्थित निर्वाचन भवन में पत्रकारों से कहा कि जिन व्यक्तियों का राष्ट्रीय पहचान पत्र लॉक हो जाता है, वे विदेश से मतदान नहीं कर सकते। यह प्रक्रिया उन सभी पर लागू होती है, जिनकी पहचान पत्र संबंधी स्थिति विवादित या निष्क्रिय कर दी जाती है। अहमद ने स्पष्ट किया कि यह कोई अपवाद नहीं है, बल्कि संवैधानिक प्रावधानों के तहत किया गया कदम है।
हसीना, जिन्हें हाल ही में सत्ता से अपदस्थ किया गया था, इस निर्णय से सीधे प्रभावित हुई हैं। लंबे समय तक देश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना पर विपक्षी दलों और नागरिक समाज के कई समूहों ने सत्तावादी रवैया अपनाने और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने के आरोप लगाए थे। उनके कार्यकाल के दौरान लगातार विरोध-प्रदर्शन, राजनीतिक हिंसा और विपक्षी नेताओं पर कार्रवाई की घटनाएं सामने आती रही थीं।
विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव आयोग का यह कदम बांग्लादेश की राजनीति में दूरगामी असर डालेगा। एक तरफ जहां विपक्ष इस फैसले को लोकतंत्र की जीत बता रहा है, वहीं हसीना समर्थक इसे राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में देख रहे हैं। हसीना की पार्टी आवामी लीग ने अभी तक इस फैसले पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि चुनाव आयोग निष्पक्षता का दावा करते हुए भी राजनीतिक दबाव में काम कर रहा है।
चुनाव पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस फैसले से आगामी आम चुनावों का माहौल और भी गर्म हो सकता है। हसीना लंबे समय से सत्ता की प्रमुख धुरी रही हैं, और उनका मतदान न कर पाना प्रतीकात्मक रूप से बड़ी घटना है। इससे उनके समर्थकों में असंतोष और गुस्सा बढ़ने की संभावना है।
गौरतलब है कि बांग्लादेश में अगले वर्ष आम चुनाव होने हैं और उससे पहले यह घटनाक्रम राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है। विपक्षी दलों ने इसे सही कदम करार दिया है और कहा है कि इससे सत्ता परिवर्तन की राह आसान होगी। वहीं, हसीना के करीबी इसे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बता रहे हैं।
चुनाव आयोग का यह कदम दर्शाता है कि बांग्लादेश में सत्ता संघर्ष अब केवल सड़कों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि संस्थागत स्तर पर भी निर्णायक मोड़ ले चुका है।