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भाजपा के फैसलों में संघ की भूमिका नहीं: मोहन भागवत

नेशनल डेस्क, प्रीति पायल |

नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि भाजपा के निर्णय लेने की प्रक्रिया में संघ का कोई प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं होता। उन्होंने कहा कि भाजपा और संघ के बीच न तो टकराव है और न ही किसी प्रकार का मनमुटाव। नागपुर में आयोजित संघ के शताब्दी समारोह में भागवत ने कहा कि संघ केवल वैचारिक मार्गदर्शन और सुझाव देता है, जबकि निर्णय पूरी तरह भाजपा अपने स्तर पर लेती है।

संघ का कार्यक्षेत्र: मार्गदर्शन, न कि नियंत्रण

भागवत ने अपने भाषण में स्पष्ट किया कि संघ का उद्देश्य विचारधारा और मूल्य आधारित दिशा देना है, न कि किसी राजनीतिक दल के लिए निर्णय तय करना। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर संघ ही फैसले करता, तो भाजपा अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया में लंबा समय नहीं लगता। उन्होंने कहा, "मैं शाखा चलाने में निपुण हूं, भाजपा सरकार चलाने में विशेषज्ञ है। हम एक-दूसरे से सुझाव ले सकते हैं, लेकिन अंतिम निर्णय वही संगठन लेता है जो उससे जुड़ा है।"

भागवत ने यह भी जोड़ा कि विचारों में भिन्नता संभव है, किंतु यह स्वाभाविक प्रक्रिया है। "हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद कभी नहीं होते," उन्होंने कहा। यह टिप्पणी उन आरोपों के जवाब में थी, जिनमें दावा किया गया कि संघ भाजपा को नियंत्रित करता है।

हर सरकार से संवाद

संघ प्रमुख ने यह भी स्पष्ट किया कि संगठन का तालमेल केवल भाजपा सरकार तक सीमित नहीं है, बल्कि हर सरकार के साथ उसका संवाद और सहयोग बना रहता है। उन्होंने कहा, "संघ का मकसद राष्ट्रहित में काम करना है, किसी दल को नियंत्रित करना नहीं। हमारा लक्ष्य राष्ट्र निर्माण है और इसके लिए हम हर सरकार से समन्वय बनाए रखते हैं।"

स्वयंसेवकों की स्वतंत्रता

भागवत ने संघ के स्वयंसेवकों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि राजनीति, समाज सेवा या अन्य क्षेत्रों में सक्रिय स्वयंसेवक अपने-अपने दायरे में स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं। "वे संघ की विचारधारा से प्रेरणा लेते हैं, लेकिन निर्णय अपने क्षेत्र की जरूरतों के अनुसार करते हैं," उन्होंने बताया।

हिंदू राष्ट्र का समावेशी स्वरूप

अपने संबोधन में भागवत ने हिंदू राष्ट्र की अवधारणा पर भी बात रखी। उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र किसी अन्य समुदाय के विरोध में नहीं है। यह एक ऐसे समाज की परिकल्पना है, जहां समानता और समरसता हो। "हिंदू राष्ट्र का मतलब हिंदू बनाम अन्य नहीं है। हमारा दृष्टिकोण समावेशी है, जिसमें किसी को बाहर नहीं किया जाता," उन्होंने स्पष्ट किया।

शताब्दी समारोह और आगे की दिशा

संघ की शताब्दी के अवसर पर दिए गए इस संदेश में भागवत ने संगठन की अब तक की उपलब्धियों और आगे की योजनाओं पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संघ का ध्येय समाज में एकता और सौहार्द बढ़ाना है, और यह कार्य शाखाओं व स्वयंसेवकों के माध्यम से आगे भी जारी रहेगा।

भागवत के इस बयान ने उन कयासों को खारिज करने का प्रयास किया, जिनमें कहा जा रहा था कि भाजपा के फैसलों पर संघ का दबदबा है। उनके संदेश ने यह स्पष्ट किया कि भाजपा और संघ वैचारिक रूप से एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन निर्णय लेने और कार्य करने में स्वतंत्र इकाइयाँ हैं।