
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
भारत ने ट्रंप को दिया झटका, अमेरिका संग ट्रेड डील पर पूर्व वित्त सचिव का बड़ा खुलासा....
भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में हाल के दिनों में आई खटास ने दोनों देशों के कूटनीतिक और आर्थिक समीकरणों पर गहरा असर डाला है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद से ही वॉशिंगटन और नई दिल्ली के बीच तनातनी बढ़ गई है। इस बीच, पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग ने एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि भारत को रूस से कच्चा तेल खरीदकर लगभग 2.5 बिलियन डॉलर की बचत हो रही है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि अमेरिका के साथ संभावित ट्रेड डील अब अधर में लटक सकती है क्योंकि भारत अमेरिका की कठोर शर्तों को स्वीकार करने के मूड में नहीं है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद बढ़ा तनाव
ऑपरेशन सिंदूर, जिसमें भारत ने अपनी सामरिक क्षमता का प्रदर्शन किया, उसके तुरंत बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्षविराम का श्रेय अमेरिका को नहीं मिला। ट्रंप प्रशासन ने इस बात से नाराज होकर भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया। विश्लेषकों का मानना है कि यह टैरिफ भारत के निर्यात पर गहरा असर डाल सकता है, खासकर उन क्षेत्रों पर जहां अमेरिका भारत का सबसे बड़ा बाजार है।
किसानों के हितों पर समझौता नहीं
भारत सरकार ने साफ संकेत दिया है कि वह अमेरिका के दबाव में आकर अपने किसानों के हितों से समझौता नहीं करेगी। अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि और डेयरी सेक्टर को अमेरिकी उत्पादों के लिए अधिक खुला करे, लेकिन भारत का मानना है कि ऐसा करने से उसके घरेलू किसान और छोटे उद्योग प्रभावित होंगे। यही वजह है कि सरकार अब अमेरिका संग ट्रेड डील को लेकर पीछे हट सकती है।
ट्रंप के दावों को बताया राजनीतिक स्टंट
एनडीटीवी से बातचीत में पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप लगातार यह दावा कर रहे हैं कि रूस से तेल खरीदकर भारत बेहद मुनाफा कमा रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि भारत ने यह खरीद अपनी ऊर्जा सुरक्षा और वित्तीय संतुलन को ध्यान में रखकर की है। गर्ग ने कहा कि तेल आयात पर हुई बचत का बड़ा हिस्सा भारत अपने घरेलू सब्सिडी ढांचे और विकास परियोजनाओं पर खर्च कर रहा है। उन्होंने ट्रंप के बयानों को सिर्फ राजनीतिक स्टंट करार दिया।
भारत का आत्मनिर्भर रुख
भारत की स्वतंत्र विदेश नीति एक बार फिर साफ तौर पर उभरकर सामने आई है। चाहे रूस से तेल खरीद का मामला हो या अमेरिका संग ट्रेड डील का, भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उसकी प्राथमिकता राष्ट्रीय हित और आर्थिक स्वायत्तता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का यह कदम न केवल अमेरिका को झटका देगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी भारत की स्वतंत्र और संतुलित नीति का संदेश देगा।
आगे का रास्ता
ट्रेड विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि भारत ने अमेरिका के साथ ट्रेड डील को टाल दिया तो इसका असर दोनों देशों के बीच निवेश और निर्यात पर जरूर पड़ेगा। हालांकि, भारत के पास यूरोप, एशिया और अफ्रीकी देशों के साथ नए व्यापारिक अवसर तलाशने की संभावना है।
भारत और अमेरिका के रिश्ते मौजूदा समय में सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। लेकिन भारत का यह स्पष्ट संदेश कि वह किसी दबाव में आकर अपने किसानों और आर्थिक हितों को कुर्बान नहीं करेगा, आने वाले समय में दोनों देशों के समीकरण तय करेगा। पूर्व वित्त सचिव का यह खुलासा भी इस बात की पुष्टि करता है कि भारत अब किसी भी वैश्विक शक्ति से बराबरी के स्तर पर बातचीत करने की स्थिति में है।