
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर भारी टैरिफ लगाने के फैसले ने न केवल दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ा दिया है, बल्कि खुद ट्रंप को भी घरेलू मोर्चे पर चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। ट्रंप ने हाल ही में भारत पर रूसी तेल खरीदकर यूक्रेन युद्ध में रूस को आर्थिक मदद पहुंचाने का आरोप लगाया और 50 प्रतिशत तक अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया। इस कदम से भारत-अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ताएं भी ठप हो गई हैं।
अमेरिकी नेताओं की नाराज़गी
टैरिफ नीति पर ट्रंप को अब अपने ही देश में घेर लिया गया है। अमेरिकी संसद के कई प्रभावशाली सदस्यों, विशेषकर डेमोक्रेट्स, ने इस फैसले को अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी को कमजोर करने वाला बताया है। उनका कहना है कि भारत जैसे महत्वपूर्ण सहयोगी को निशाना बनाकर चीन जैसे देशों को फायदा पहुंचाया जा रहा है। हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी ने भी ट्रंप के कदम पर नाराजगी जताते हुए कहा कि “भारत को अलग-थलग करने का निर्णय अमेरिकी उद्योग और नागरिकों के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है।”
पूर्व उपराष्ट्रपति का हमला
पूर्व उपराष्ट्रपति माइक पेंस और डेमोक्रेटिक नेता ने भी ट्रंप को घेरते हुए कहा कि यह नीति अमेरिका के दीर्घकालिक हितों के खिलाफ है। उन्होंने आरोप लगाया कि ट्रंप का फैसला बिना दूरगामी सोच और केवल राजनीतिक लाभ के लिए लिया गया है। उनका कहना है कि भारत पर टैरिफ लगाने से अमेरिकी कंपनियों के निर्यात और रोजगार पर बुरा असर पड़ेगा।
विशेषज्ञों की राय
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह कदम वैश्विक व्यापार संतुलन को प्रभावित कर सकता है। भारत-अमेरिका व्यापार 150 अरब डॉलर से अधिक का है और इस पर टैरिफ का सीधा असर पड़ेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका के घरेलू उद्योगों पर भी महंगाई और आपूर्ति संकट का दबाव बढ़ सकता है।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत ने इस फैसले पर गहरी निराशा जताई है। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि टैरिफ बढ़ाने का निर्णय किसी भी तरह से “साझेदारी की भावना” के अनुरूप नहीं है। भारत ने संकेत दिए हैं कि वह विश्व व्यापार संगठन (WTO) में इस मुद्दे को उठाएगा और जवाबी कदमों पर भी विचार करेगा।
स्पष्ट है कि ट्रंप का यह कदम जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद बढ़ा रहा है, वहीं अमेरिका के भीतर भी उनकी नीतियों को लेकर गहरी असहमति पैदा कर रहा है।