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भारत बंद: 25 करोड़ से अधिक कामगारों और किसानों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल

नेशनल डेस्क, श्रेया पांडेय |
9 जुलाई 2025 को भारत एक बार फिर राष्ट्रव्यापी हड़ताल यानी "भारत बंद" का गवाह बना। इस बार देश भर में लगभग 25 करोड़ से अधिक कामगार, किसान, ग्रामीण मजदूर और कर्मचारी सड़कों पर उतरे। यह बंद 10 प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, साथ ही कई किसान और ग्रामीण संगठन के आह्वान पर बुलाया गया है। बंद का उद्देश्य श्रमिकों और किसानों के अधिकारों की रक्षा, बढ़ती महंगाई के खिलाफ विरोध, और रोजगार की अनिश्चितता पर केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करना है।

बंद के तहत सबसे अधिक प्रभाव औद्योगिक क्षेत्रों, ग्रामीण अंचलों और श्रमिक बहुल इलाकों में देखने को मिला। बैंकिंग सेवाएं, परिवहन, निर्माण, फैक्ट्री और खनन जैसे क्षेत्रों में कामकाज बाधित हुआ। कई बड़े सार्वजनिक क्षेत्रों की यूनियनों ने इस आंदोलन को समर्थन दिया, जिनमें रेलवे, कोल इंडिया, NTPC, भेल और BSNL जैसे नाम शामिल हैं। हालांकि आवश्यक सेवाओं को इससे बाहर रखा गया है, फिर भी बंद के कारण आम जनता को यात्रा और लेन-देन में परेशानियों का सामना करना पड़ा।

किसान संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि सुधारों से किसानों की आत्मनिर्भरता समाप्त हो गई है और बड़े कॉर्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने की नीति अपनाई जा रही है। इसी प्रकार, श्रमिकों की ओर से मुख्य मांगों में न्यूनतम वेतन को बढ़ाकर ₹26,000 प्रति माह करना, EPF और पेंशन लाभ में बढ़ोतरी, और श्रम कानूनों में प्रस्तावित बदलावों को वापस लेना शामिल है।

देश के कई राज्यों में सड़क और रेल यातायात बाधित रहा। दिल्ली, महाराष्ट्र, बंगाल, बिहार, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु जैसे राज्यों में प्रभाव व्यापक रहा। हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से इस बंद को लेकर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को सतर्क रहने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश दिए हैं।

सामाजिक मीडिया पर भी यह आंदोलन ट्रेंड करता रहा, #BharatBandh2025 और #SaveWorkersRights जैसे हैशटैग्स के साथ लाखों लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी। विपक्षी दलों ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया है और सरकार पर जनविरोधी नीतियाँ अपनाने का आरोप लगाया है।

भारत बंद 2025 सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि देश के करोड़ों श्रमिकों और किसानों की आवाज बनकर उभरा है। इसका असर न सिर्फ वर्तमान नीतियों पर, बल्कि आगामी चुनावों और नीति निर्धारण पर भी देखने को मिल सकता है।