
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
भारतीय रुपये ने शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले अब तक का सबसे निचला स्तर छू लिया। विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया ₹88.15 प्रति डॉलर पर बंद हुआ, जो अब तक का ऑल-टाइम लो है। दिनभर के कारोबार में रुपया 0.5% टूटा, जो हाल के दिनों की सबसे बड़ी एकदिवसीय गिरावट मानी जा रही है। इस गिरावट के साथ ही रुपया इस साल अब तक (YTD) 3% कमजोर हो चुका है और एशिया की सबसे कमजोर करेंसी के रूप में दर्ज हो गया है।
डॉलर के दबाव में रुपया
अमेरिकी डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की सख्त मौद्रिक नीतियों और ब्याज दरों में वृद्धि की आशंका ने डॉलर को मजबूती दी है। इसके अलावा, वैश्विक निवेशक उभरते बाजारों से पैसा निकालकर सुरक्षित समझे जाने वाले डॉलर एसेट्स में निवेश कर रहे हैं। इसका सीधा असर भारतीय रुपये पर पड़ा है।
चीन के युआन के मुकाबले भी कमजोर
सिर्फ डॉलर ही नहीं, बल्कि भारतीय रुपया चीनी युआन के मुकाबले भी कमजोर हुआ है। शुक्रवार को रुपया 12.33 युआन पर ट्रेड हुआ, जो इस हफ्ते में 1.2% और इस महीने में 1.6% की गिरावट को दर्शाता है। पिछले चार महीनों में रुपये ने युआन के मुकाबले 6% कमजोरी दिखाई है। इससे भारत की ट्रेड बैलेंस की चुनौतियाँ और बढ़ सकती हैं, क्योंकि चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
असर महंगाई और इंपोर्ट पर
रुपये की कमजोरी का सबसे बड़ा असर आयातित वस्तुओं पर पड़ेगा। भारत कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक सामान और कई औद्योगिक कच्चे माल का बड़ा हिस्सा आयात करता है। रुपये की गिरावट से इनकी कीमतें और बढ़ जाएंगी, जिससे घरेलू महंगाई पर दबाव बढ़ना तय है। वहीं, आम उपभोक्ताओं को पेट्रोल-डीजल से लेकर मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स तक की कीमतों में बढ़ोतरी झेलनी पड़ सकती है।
एक्सपोर्टर्स के लिए राहत
हालांकि, रुपये की कमजोरी का एक सकारात्मक पहलू भी है। भारतीय निर्यातकों को इसका फायदा मिल सकता है। आईटी और फार्मा जैसी कंपनियों की कमाई डॉलर में होती है, ऐसे में रुपये की गिरावट उनकी आय बढ़ा सकती है। इससे एक्सपोर्ट सेक्टर को प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिल सकती है।
सरकार और आरबीआई की चुनौतियाँ
अब सबसे बड़ी चुनौती भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के सामने है। आरबीआई विदेशी मुद्रा बाजार में दखल देकर रुपये की गिरावट को नियंत्रित करने की कोशिश कर सकता है, लेकिन इसके लिए उसे डॉलर भंडार का इस्तेमाल करना होगा। वहीं, सरकार पर महंगाई और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने का दबाव बढ़ गया है।
स्पष्ट है कि रुपये की यह गिरावट केवल आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक और नीतिगत चुनौती भी है। आने वाले समय में इसके असर आम आदमी की जेब से लेकर उद्योग जगत तक दिखाई देंगे।