लोकल डेस्क, आर्या कुमारी
मधुबन में त्रिकोणीय मुकाबला तेज: राणा रणधीर, संध्या रानी और कुणाल भूषण की एंट्री ने बढ़ाई हलचल। मधुबन विधानसभा चुनाव इस बार पूरी तरह नए तेवर में दिख रहा है। जहां लंबे समय से मुकाबला NDA और महागठबंधन के बीच सीमित रहता था, वहीं इस बार आम आदमी पार्टी (AAP) के आने से राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं। 27 वर्षीय युवा उम्मीदवार कुणाल भूषण के मैदान में उतरने से चुनाव अब साफ तौर पर त्रिकोणीय हो चुका है।
AAP का नया दांव, युवा चेहरा कुणाल भूषण:
आम आदमी पार्टी ने मधुबन सीट पर पढ़े-लिखे और साफ छवि वाले कुणाल भूषण को टिकट दिया है। राजनीतिक पृष्ठभूमि न होने के बावजूद कुणाल को युवाओं और पहली बार वोट देने वालों से अप्रत्याशित समर्थन मिल रहा है। उनकी सभाएं भले छोटी हों, लेकिन असर गहरा छोड़ रही हैं।
ग्राउंड पर बढ़ता समर्थन:
बाजारों, गांवों और बूथों पर हुई बातचीत के मुताबिक लोग पारंपरिक दो दलों से इतर तीसरे विकल्प को गंभीरता से देख रहे हैं। कुणाल भूषण को खासकर उन वोटरों का सधा हुआ समर्थन मिल रहा है जो बदलाव की तलाश में हैं। स्थानीय लोगों की राय है कि “नया चेहरा चाहिए”, और यह भावना लगातार मजबूत होती जा रही है।
मदन साह का टिकट कटना बना अहम फैक्टर:
RJD के पुराने और प्रभावी नेता मदन साह का टिकट कटने से मधुबन की राजनीति में बड़ा उलटफेर हुआ है। कई गांवों में समर्थक खुलकर नाराज़गी जता रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह नाराज़गी वोट ट्रांसफर को प्रभावित कर सकती है और तीसरे विकल्प को बढ़त दिला सकती है।
मधुबन की जनता की प्राथमिकता - विकास और बदलाव:
सड़क, स्वास्थ्य सुविधाएं, स्थानीय रोजगार और कनेक्टिविटी जैसे मुद्दे इस बार चर्चा के केंद्र में हैं। बड़ी संख्या में मतदाता बदलाव के मूड में दिख रहे हैं, जिससे युवा उम्मीदवारों के लिए संभावनाएं बढ़ी हैं। यही वजह है कि कुणाल भूषण अचानक तेज़ी से चर्चा के केंद्र में आ गए हैं।
क्या कुणाल भूषण बनेंगे गेम-चेंजर?
राणा रणधीर अपनी पारंपरिक पकड़ और कैडर वोट पर भरोसा कर रहे हैं। संध्या रानी महागठबंधन के साझा वोट बैंक के साथ मैदान में हैं। लेकिन कुणाल भूषण को युवा, नाराज़ और बदलाव चाहने वाले वोटरों का स्पष्ट समर्थन मिल रहा है।
यही फैक्टर मधुबन की लड़ाई को बेहद दिलचस्प बना रहा है।







