स्टेट डेस्क, आर्या कुमारी |
बिहार में महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस और राजद के बीच तनातनी जारी है। नामांकन वापसी की अंतिम घड़ी तक भी सहमति नहीं बन पाई है, जिससे कई सीटों पर दोस्ताना मुकाबले की स्थिति बन गई है। शीर्ष नेतृत्व के बीच संवाद की कमी और कांग्रेस का राजद के दबाव को न मानना इस गतिरोध को और बढ़ा रहा है। कांग्रेस नेता किशोर कुमार झा ने कहा है कि “दोस्ताना मुकाबले का अनुभव पहले कभी सकारात्मक नहीं रहा है।”
पहले चरण के नामांकन वापसी में बस कुछ घंटे शेष हैं, लेकिन दोनों दल अपने-अपने रुख पर अड़े हैं। रणनीतिकारों की लगातार कोशिशों के बावजूद सीटों की यह गुत्थी सुलझ नहीं पा रही है। ऐसे में चुनावी समीकरण बिगड़ने की आशंका से दोनों खेमों में बेचैनी है। बताया जा रहा है कि उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद से दोनों दलों के शीर्ष नेताओं के बीच कोई सीधी बातचीत नहीं हुई है।
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, वह अपनी दावेदारी वाली सीटों पर पीछे हटने को तैयार नहीं है, चाहे राजद वहां उम्मीदवार उतारे या नहीं। इस कारण कई सीटों पर दोस्ताना मुकाबला तय माना जा रहा है। रविवार को दोनों दलों के बीच फोन पर उम्मीदवारों की वापसी को लेकर बातचीत हुई, मगर कोई निष्कर्ष नहीं निकला। सोमवार को पहले चरण के नामांकन वापसी की आखिरी तारीख है।
कांग्रेस की ओर से तेजस्वी यादव को यह संदेश दिया गया है कि सीटों पर विवाद से गठबंधन की एकजुटता पर असर पड़ेगा, लेकिन राजद की ओर से लचीलापन नहीं दिखा। इसी वजह से कांग्रेस नेतृत्व ने भी लालू प्रसाद या तेजस्वी से संवाद बढ़ाने की पहल नहीं की है।
तेजस्वी यादव ने पिछले हफ्ते दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और केसी वेणुगोपाल से मुलाकात कर सीट विवाद सुलझाने का दावा किया था, लेकिन जमीनी स्तर पर कई सीटों पर दोनों दल आमने-सामने हैं। इसे देखते हुए बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने नेताओं को कुछ सीटों पर “दोस्ताना मुकाबले” के लिए तैयार रहने का संदेश दिया है।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता किशोर कुमार झा ने कहा, “करीब तीन दशक के गठबंधन में दोस्ताना मुकाबले का अनुभव अच्छा नहीं रहा है। इसलिए राजद को स्पष्ट संदेश देना जरूरी है कि ऐसी नौबत से बचा जाए, क्योंकि राहुल गांधी ने महागठबंधन के लिए चुनाव का टोन सेट किया है।” उन्होंने 2004 और 2005 के चुनावों के उदाहरण देते हुए कहा कि दोस्ताना मुकाबले का परिणाम हमेशा निराशाजनक रहा है और यह न तो कांग्रेस के हित में है, न ही महागठबंधन के।







