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मानहानि कानून में बदलाव की जरूरत: सुप्रीम कोर्ट

नेशनल डेस्क, आर्या कुमारी |

सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि मानहानि को आपराधिक अपराध की श्रेणी में बनाए रखने का समय अब खत्म हो गया है और इसे अपराध की श्रेणी से हटाने की आवश्यकता है। यह टिप्पणी 2016 के फैसले से महत्वपूर्ण बदलाव है, जिसमें कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के तहत मानहानि को अपराध माना था।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अब समय आ गया है कि मानहानि के मामलों को क्रिमिनल ऑफेंस से हटाया जाए। 2016 में कोर्ट ने कहा था कि यह कानून सही है और मानहानि का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है। उस समय यह आईपीसी की धारा 499 के तहत अपराध थी। अब यह धारा बदल चुकी है और भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 के तहत मानहानि को अब भी अपराध मानती है।

हालांकि, कोर्ट अब मानहानि को अपराध मानने पर फिर से विचार कर रहा है क्योंकि आज अभिव्यक्ति की आजादी और मीडिया की भूमिका अहम है। कोर्ट ने कहा कि इसे सुधारने की ज़रूरत है ताकि लोगों की बोलने की आजादी बनी रहे।

यह सुझाव उस समय दिया गया जब न्यूज पोर्टल 'द वायर' के खिलाफ आपराधिक मानहानि मामले की सुनवाई हो रही थी।

क्या है पूरा मामला?

साल 2016 में न्यूज पोर्टल 'द वायर' के खिलाफ JNU के एक प्रोफेसर ने आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज करवाया था। याचिका में मैजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन को चुनौती दी गई थी, जिसे बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने मानहानि मामले में 'द वायर' को जारी समन को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है।

सुनवाई के दौरान जस्टिस एम.एम. सुंदरश ने कहा कि अब समय आ गया है कि इसे अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट में न्यूज पोर्टल 'द वायर' का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिबल रख रहे थे।