
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चार दिवसीय जापान और चीन यात्रा पूरी करने के बाद सोमवार को स्वदेश लौट आए। यह यात्रा कई दृष्टियों से ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण रही, जिसमें उन्होंने दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व के साथ मुलाकात कर आर्थिक, तकनीकी और रणनीतिक सहयोग को नई दिशा दी।
मोदी 29 अगस्त की रात जापान पहुंचे थे, जहां उन्होंने दो दिन का प्रवास किया। इस दौरान उन्होंने भारत-जापान आर्थिक मंच की बैठक में भाग लिया और जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा के साथ 15वें वार्षिक शिखर सम्मेलन में शामिल हुए। बैठक में दोनों देशों ने प्रौद्योगिकी, व्यापार, रक्षा और शिक्षा के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। कई महत्वपूर्ण समझौते भी संपन्न हुए, जिनमें सेमीकंडक्टर तकनीक, हरित ऊर्जा और कौशल विकास प्रमुख रहे। प्रधानमंत्री मोदी ने सेंडाई शहर का भी दौरा किया, जिसे जापान का ‘सेमीकंडक्टर हब’ माना जाता है। यह दौरा भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।
जापान यात्रा के बाद प्रधानमंत्री मोदी 31 अगस्त को चीन पहुंचे। उन्होंने यहां चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय वार्ता की। बैठक में सीमा पर शांति बनाए रखने, व्यापार संतुलन, और दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर चर्चा हुई। मोदी ने चीन से भारत के लिए बाजार में अधिक अवसर उपलब्ध कराने और निवेश बढ़ाने का आग्रह किया।
इसके साथ ही, प्रधानमंत्री ने तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के 25वें शिखर सम्मेलन में भी भाग लिया। उन्होंने संगठन के सदस्य देशों के नेताओं से अलग-अलग बैठकें कीं और क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद निरोध, तथा कनेक्टिविटी जैसे मुद्दों पर भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। SCO मंच पर प्रधानमंत्री मोदी ने बहुपक्षीय सहयोग, आर्थिक एकीकरण और वैश्विक शांति के लिए सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया।
यात्रा के अंतिम दिन, मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से द्विपक्षीय वार्ता की। दोनों नेताओं ने ऊर्जा, वित्त, रक्षा और वैश्विक शांति से जुड़े विषयों पर चर्चा की। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत और रूस कठिन समय में हमेशा साथ खड़े रहे हैं और उनकी साझेदारी वैश्विक स्थिरता के लिए बेहद अहम है। उन्होंने यूक्रेन संघर्ष के शीघ्र समाधान की भी उम्मीद जताई।
विदेश मंत्रालय के अनुसार, इस चार दिवसीय यात्रा से भारत के आर्थिक, रणनीतिक और कूटनीतिक हितों को नई मजबूती मिली है। जापान में हुई तकनीकी समझौतों से भारत के औद्योगिक ढांचे को लाभ मिलेगा, वहीं चीन और रूस के साथ हुई वार्ताओं से क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति और मजबूत हुई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा एक व्यापक कूटनीतिक पहल के रूप में देखी जा रही है, जिसने भारत को एशिया और विश्व की प्रमुख ताकतों के बीच और अधिक प्रभावशाली ढंग से स्थापित किया है।