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मोदी बोले: गोलू अपहरण जैसी घटनाएं समाज को झकझोरती हैं

स्टेट डेस्क, आर्या कुमारी |

बिहार चुनावी माहौल के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुजफ्फरपुर की सभा में चर्चित गोलू अपहरण कांड का जिक्र किया, जिसके बाद एक बार फिर बिहार का ‘अपहरण उद्योग’ चर्चा में आ गया।

एनडीए के नेता चुनाव प्रचार के दौरान आरजेडी के ‘जंगल राज’ का मुद्दा उठा रहे हैं। इसी क्रम में मुजफ्फरपुर के मोतीपुर में सभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, “लालू राज में दिनदहाड़े बच्चों का अपहरण कर लिया जाता था। 2001 में मुजफ्फरपुर के गोलू का भी अपहरण हुआ और उसकी हत्या कर दी गई थी।”

आज भी सिहर उठते हैं लोग

2001 में हुआ यह कांड आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देता है। यह वह घटना थी जिसने पूरे बिहार और देश को हिला दिया था। दिनदहाड़े एक स्कूली बच्चे का अपहरण, फिरौती की मांग और बाद में हत्या ने समाज को झकझोर दिया। करीब 24 साल बाद पीएम मोदी के जिक्र से उस दौर के ‘अपहरण उद्योग’ की भयावह यादें फिर लौट आईं।

क्या था पूरा मामला?

साल 2001 में मुजफ्फरपुर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ने वाला गोलू कुमार रोज की तरह स्कूल से घर लौट रहा था। रास्ते में कुछ बदमाशों ने उसका अपहरण कर लिया। परिवार ने हर जगह तलाश की, लेकिन जब देर शाम तक कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। जांच में पता चला कि अपहरणकर्ताओं ने फिरौती की मांग की थी।

फिरौती, साजिश और हत्या

परिवार और पुलिस गोलू को सुरक्षित वापस लाने में जुटे रहे, लेकिन तभी दर्दनाक खबर आई—गोलू की हत्या कर दी गई थी। यह खबर फैलते ही पटना से मुजफ्फरपुर तक गुस्से की लहर दौड़ गई। प्रशासन पर लापरवाही के आरोप लगे और यह मामला राजनीतिक मुद्दा बन गया।

पुलिस की कार्रवाई और मुकदमा

पुलिस ने सात लोगों को नामजद किया। कुछ गिरफ्तार हुए, तो कुछ फरार हो गए। जांच में सामने आया कि अपहरण की साजिश पहले से रची गई थी और इसमें स्थानीय लोग भी शामिल थे। केस अदालत पहुंचा, लेकिन समय के साथ कमजोर पड़ता गया; गवाह मुकरते गए और मामला फाइलों में दब गया।

23 साल बाद फिर खुली फाइल

2024 में इस केस की फाइल दोबारा खोली गई। पुलिस ने पुराने रिकॉर्ड खंगाले, गवाहों से संपर्क किया और फरार आरोपियों की तलाश शुरू की। जांच अधिकारी को सभी आरोपितों का सत्यापन करने का आदेश दिया गया है।
करीब 24 साल बाद जब पीएम मोदी ने मोतीपुर की सभा में गोलू अपहरण कांड का जिक्र किया, तो बिहार का ‘अपहरण उद्योग’ एक बार फिर चर्चा में लौट आया।