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राहुल गांधी का वार: 12,000 ट्रेनें बंद, डबल इंजन फेल

स्पेशल रिपोर्ट, नीतीश कुमार।

क्या है 12,000 ट्रेनों की सच्चाई? “फेल डबल इंजन सरकार”: राहुल गांधी

भारत में त्योहारों का मौसम, विशेष रूप से दिवाली, भाई दूज और छठ पूजा, प्रवासी मजदूरों के लिए घर लौटने का समय होता है। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी पर्व-त्योहारों में घर लौटने की यह खुशी सर दर्द में बदलती दिख रही है। लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने छठ पूजा से पहले ट्रेनों में ठसाठस भीड़ को लेकर केंद्र और बिहार की 'डबल इंजन' सरकार पर सीधी चोट की है। उन्होंने सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो साझा कर सवाल दागा, "12,000 स्पेशल ट्रेनें कहां हैं?" राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि “फेल डबल इंजन सरकार” के दावे खोखले साबित हुए हैं। जबकि रेल मंत्रालय का दावा है कि 1 अक्टूबर से 30 नवंबर तक 13,000 से अधिक विशेष ट्रेनें चला दी गई हैं, जिनसे 1.5 करोड़ से ज्यादा यात्री लाभान्वित हो चुके हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है- स्टेशनों पर लंबी कतारें, खिड़की पर लटके यात्री और टिकटों के लिए मशक्कत। 

यह विवाद न केवल रेल व्यवस्था की पोल खोल रहा है, बल्कि बिहार के पलायन संकट को भी उजागर कर रहा है। राहुल गांधी ने शनिवार को एक्स पर पोस्ट कर लिखा, "त्योहारों का महीना है – दिवाली, भाईदूज, छठ। बिहार में इन त्योहारों का मतलब सिर्फ आस्था नहीं, घर लौटने की लालसा है – मिट्टी की खुशबू, परिवार का स्नेह, गांव का अपनापन। लेकिन यह लालसा अब एक संघर्ष बन चुकी है।" उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार जाने वाली ट्रेनें क्षमता से 200 प्रतिशत भरी हुई हैं, जहां लोग दरवाजों और छतों पर लटककर सफर कर रहे हैं। "टिकट मिलना असंभव है और सफर अमानवीय हो गया है," गांधी ने इसे "फेल डबल इंजन सरकार" का प्रमाण बताया है। 

उनका तर्क स्पष्ट है: अगर बिहार में रोजगार और सम्मानजनक जीवन होता, तो लाखों लोग दिल्ली-मुंबई की ओर क्यों पलायन करते? "ये सिर्फ मजबूर यात्री नहीं, राजग की धोखेबाज नीतियों का जीता-जागता सबूत हैं। यात्रा सुरक्षित और सम्मानजनक होना अधिकार है, कोई एहसान नहीं। "रेल मंत्रालय ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) के अनुसार, त्योहारी सीजन में कुल 12,011 विशेष ट्रेन फेरे निर्धारित किए गए थे, जो अब 13,000 से ऊपर पहुंच चुके हैं। औसतन प्रतिदिन 196 ट्रेनें चल रही हैं, और 18 अक्टूबर को रिकॉर्ड 280 ट्रेनें संचालित हुईं। छठ पूजा के लिए अगले पांच दिनों में 1,500 अतिरिक्त ट्रेनें जोड़ी गई हैं, जबकि वापसी यात्रा के लिए 28 अक्टूबर से 30 नवंबर तक 6,181 विशेष ट्रेनें चलेंगी। 

मंत्रालय का दावा है कि हीट-मैपिंग तकनीक से 35 प्रमुख स्टेशनों पर भीड़ प्रबंधन हो रहा है, और वेटिंग लिस्ट 25 प्रतिशत तक सीमित कर दी गई है। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, "हमने बिहार-यूपी के लिए 30 नई ट्रेनें शुरू की हैं, और नई दिल्ली-पटना वंदे भारत एक्सप्रेस विशेष रूप से छठ के लिए चला रही है।" अब तक 1.5 करोड़ यात्री यात्रा कर चुके हैं, और कुल 2.5 करोड़ की उम्मीद है।

लेकिन राहुल गांधी के दावों का समर्थन जमीनी रिपोर्ट्स कर रही हैं। इंडिया टीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार और उत्तर प्रदेश में 'कंट्रोल जोन' बनाए गए हैं, फिर भी स्टेशनों पर अव्यवस्था बरकरार है। लाइव हिंदुस्तान ने वीडियो शेयर किए, जहां ट्रेनों की छतों पर पांच-पांच यात्री सवार दिखे। जगरण ने लिखा, "लालू प्रसाद और राहुल गांधी के दावों को रेलवे ने खारिज किया, लेकिन यात्रियों की दुर्दशा साफ दिख रही है।" एनबीटी के अनुसार, यह समस्या हर साल बढ़ रही है – 2024 में 7,663 विशेष ट्रेनें चलीं, जो 73 प्रतिशत अधिक थीं, फिर भी ओवरक्राउडिंग की शिकायतें रहीं। 

 बिहार में यह और गंभीर है, जहां छठ पर करोड़ों प्रवासी लौटते हैं। विपक्ष और सरकार के दावों का विश्लेषण करें तो एक स्पष्ट विरोधाभास झलकता है। विपक्ष के मुताबिक, 12,000 स्पेशल ट्रेनें 'खोखला दावा' हैं और हालात हर साल बदतर हो रहे हैं, जबकि सरकार 13,000 से अधिक ट्रेनों और 1.5 करोड़ यात्रियों के आंकड़ों से अपनी पीठ थपथपा रही है – लेकिन समाचार आधारित वास्तविकता बताती है कि बिहार रूट्स पर ये ट्रेनें अपर्याप्त साबित हो रही हैं। भीड़भाड़ पर विपक्ष अमानवीय हालातों का हवाला दे रहा है, सरकार अतिरिक्त स्टाफ और हीट-मैपिंग का जिक्र करती है, मगर वीडियो प्रमाणों से स्टेशनों पर कतारें और दरवाजे व खिड़कियों पर लटक कर हो रही सवारियां साफ झलक रही हैं। 

पलायन के कारण पर विपक्ष बेरोजगारी और नीतिगत विफलता को जिम्मेदार ठहराता है, सरकार 'बिहार उद्यमिता योजना' जैसे प्रयासों का उल्लेख करती है, लेकिन 2023-24 के आंकड़ों से 9.9 प्रतिशत युवा बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से ऊपर बनी हुई है, जो चुनावी मुद्दा बन चुकी है। समग्र रूप से, विशेष ट्रेनें एक अस्थायी राहत हैं, लेकिन मूल समस्या - स्थानीय रोजगार की कमी - बरकरार है। यह विवाद 2025 बिहार विधानसभा चुनावों के ठीक पहले आया है, जहां 'पलायन' प्रमुख एजेंडा है। राहुल गांधी का हमला न केवल रेलवे पर, बल्कि नीतिगत स्तर पर है। क्या सरकार अतिरिक्त ट्रेनों से समस्या हल कर पाएगी, या विपक्ष इसे वोट बैंक में बदल देगा? फिलहाल, प्रवासी मजदूरों का दर्द अनसुना सा लग रहा है। रेल मंत्रालय ने वादा किया है कि वापसी यात्रा में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी, लेकिन यात्रियों की आवाज अब सरकार तक पहुंचनी चाहिए।