नेशनल डेस्क, नीतीश कुमार।
लालू यादव का परिवार ही नहीं, यूपी से लेकर तमिलनाडु तक कई सियासी घरानों में दरारें देखने को मिली हैं। देश की राजनीति में परिवार आधारित दलों का प्रभाव हमेशा रहा है, लेकिन समय-समय पर इन पार्टियों में आंतरिक कलह और टूट की घटनाएं भी उजागर होती रही हैं। ताज़ा उदाहरण बिहार का है, जहां पहले तेजप्रताप को पार्टी से बाहर किया गया था और अब विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने भी पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी है। यह स्थिति सिर्फ लालू परिवार तक सीमित नहीं है; यूपी, हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना तक कई नामी राजनीतिक परिवार इस तरह की अंदरूनी लड़ाइयों से गुजर चुके हैं।
मुलायम सिंह यादव परिवार: अखिलेश बनाम शिवपाल का संघर्ष
उत्तर प्रदेश में सबसे चर्चित पारिवारिक विवाद मुलायम सिंह यादव के घराने में सामने आया। 2016 में अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल में खुला टकराव हुआ। मुलायम सिंह ने कई बार समझौते की कोशिश की, लेकिन असफल रहे और शिवपाल ने अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली। ‘नेताजी’ के निधन के बाद अखिलेश और शिवपाल के बीच फिर मेल-मिलाप हुआ और शिवपाल ने अपनी पार्टी का सपा में विलय कर दिया।
इसके अतिरिक्त, मुलायम सिंह की छोटी बहू अपर्णा यादव ने 2022 में समाजवादी पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। उन्होंने दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय पर सदस्यता ली, जो इसे राष्ट्रीय उपलब्धि की तरह पेश करने का संकेत था। अपर्णा और प्रतीक यादव की अखिलेश से अनबन जगज़ाहिर थी। अपर्णा ने सपा में सिर्फ एक चुनाव लड़ा और अक्सर बीजेपी नेताओं एवं प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करती दिखाई देती थीं।
चौटाला परिवार: दो भाइयों का राजनीतिक अलगाव
हरियाणा में चौटाला परिवार की राजनीति लंबे समय से विभाजन का सामना कर रही है। INLD से अलग होकर अजय चौटाला और उनके बेटों ने जननायक जनता पार्टी (JJP) का गठन किया। दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री बने, जबकि ओपी चौटाला INLD को आगे बढ़ाते रहे। 2018 में विरासत की खींचतान तेज हुई और इसका असर पार्टी पर साफ दिखाई दिया। ओमप्रकाश चौटाला व बड़े बेटे अजय चौटाला अलग राह पर चल पड़े।
अजय ने JJP बनाई, जिसने 2019 के विधानसभा चुनाव में 90 में से 10 सीटें जीतीं। दुष्यंत चौटाला किंगमेकर बनकर उभरे और BJP-JJP गठबंधन के साथ उन्होंने डिप्टी सीएम पद संभाला। हालांकि लोकसभा चुनाव में JJP खाली हाथ रही, फिर भी गठबंधन चलता रहा। लेकिन 2024 से पहले BJP-JJP गठबंधन समाप्त हो गया। इसके बाद मनोहर लाल खट्टर ने इस्तीफा दिया और नायब सिंह सैनी मुख्यमंत्री बने। गठबंधन टूटने पर दुष्यंत को भी उपमुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा।
शरद पवार परिवार: भतीजे की बगावत से हलचल
2023 में महाराष्ट्र की राजनीति तब बदल गई जब शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने NCP में टूट कर दी और भाजपा-शिंदे सरकार में उपमुख्यमंत्री बन गए। शरद पवार अपनी ‘असली NCP’ को बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। माना जाता है कि शरद पवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले को नेतृत्व देना चाहते थे, जिससे अजित पवार नाराज़ रहते थे।
गांधी परिवार: मेनका गांधी का अलग रास्ता
संजय गांधी की मौत के बाद उनकी पत्नी मेनका गांधी परिवार से अलग हो गईं। बाद में वह बीजेपी से कई बार सांसद और केंद्रीय मंत्री बनीं। 2024 में उन्हें सुल्तानपुर से हार मिली। उनके बेटे वरुण गांधी भी बीजेपी से सांसद रह चुके हैं।
ठाकरे परिवार: उद्धव बनाम राज का पुराना मतभेद
महाराष्ट्र के ठाकरे परिवार में भी विभाजन हुआ। राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर MNS बनाई। 2022 में एकनाथ शिंदे ने भी बड़ी टूट कराई और मुख्यमंत्री बने। उद्धव ठाकरे अपने गुट को बचाने की कोशिशों में जुटे हैं। हालांकि अब राज और उद्धव के बीच दूरी कम होती दिखाई दे रही है।
करुणानिधि परिवार: स्टालिन - अलागिरी का संघर्ष
तमिलनाडु की DMK में भी करुणानिधि के बेटों के बीच मतभेद रहे। एमके स्टालिन को वारिस घोषित किया गया, जिस पर उनके बड़े भाई एमके अलागिरी नाराज़ हो गए। विवाद इतना बढ़ा कि अलागिरी को पार्टी से निकाल दिया गया।
KCR परिवार: सत्ता को लेकर बिगड़ते समीकरण
तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हारने के बाद KCR परिवार में भी सबकुछ सहज नहीं है। पार्टी की कमान KTR संभाल रहे हैं, जो पिता के मुख्यमंत्री रहते ही मंत्री बन चुके थे। उन्होंने अपनी बहन के. कविता को पार्टी से बाहर किया, जिसके बाद कविता ने अलग पार्टी बना ली।
सोरेन परिवार: नेतृत्व संघर्ष और तनाव
झारखंड में शिबू सोरेन के परिवार में भी राजनीतिक खींचतान दिखी है। हेमंत सोरेन और उनके भाई बसंत सोरेन के बीच कई बार मतभेद खुले तौर पर सामने आए। शिबू सोरेन ने परिवार को एकजुट रखने की कोशिश की, लेकिन सत्ता की राजनीति से तनाव लगातार बना रहा। तीन बेटों दुर्गा, हेमंत और बसंत में से दुर्गा सोरेन का निधन हो चुका है। उनकी पत्नी सीता सोरेन बीजेपी में शामिल हैं और 2024 में दुमका से लोकसभा चुनाव लड़ीं, जिसमें वह करीब 22 हजार वोटों से हार गईं।







