
नेशनल डेस्क, श्रेयांश पराशर l
तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच चल रहे विवाद के बीच वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के सामने कहा कि राज्यपाल को न्यायाधीश की तरह कार्य करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी विधेयक की संवैधानिक वैधता की जांच करने का अधिकार केवल न्यायालयों को है, राज्यपाल को नहीं।
सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल की भूमिका केवल औपचारिक है – वे विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को या तो अपनी सहमति दें या राष्ट्रपति के पास भेजें। लेकिन यदि किसी कानून को असंवैधानिक ठहराना है, तो यह केवल अदालत का अधिकार है। उन्होंने जोर दिया कि यदि राज्यपाल इस भूमिका से आगे बढ़कर निर्णय देने लगें तो यह लोकतंत्र और संविधान की मूल भावना के विरुद्ध होगा।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी.एस. नरसिम्हा और ए.एस. चंद्रचूड़ शामिल हैं, अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल व राष्ट्रपति की शक्तियों के दायरे की सुनवाई कर रही है। इस पीठ में यह अहम प्रश्न उठा है कि क्या राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक लंबित रख सकते हैं या नहीं।
कई राज्यों में अक्सर यह देखा गया है कि राज्यपाल विधेयकों पर लंबे समय तक निर्णय नहीं लेते, जिससे सरकार की नीतियां अटक जाती हैं और विधानसभा की कार्यप्रणाली बाधित होती है। इस मामले का असर सिर्फ तमिलनाडु ही नहीं बल्कि पूरे देश के संघीय ढांचे पर पड़ेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि अदालत का आने वाला फैसला यह स्पष्ट कर देगा कि लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार और राज्यपाल के बीच शक्ति संतुलन किस रूप में कायम रहना चाहिए। यह फैसला आने वाले समय में राज्यों और केंद्र के संबंधों की दिशा तय कर सकता है।