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संयुक्त राष्ट्र में सुधार समय की आवश्यकता : एस. जयशंकर

विदेश डेस्क, ऋषि राज |

विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि संगठन को वर्तमान वैश्विक प्राथमिकताओं और वास्तविकताओं के अनुरूप ढालना अब समय की मांग बन चुका है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की मूल भावना; यानी विश्व शांति, सुरक्षा और सहयोग को बनाए रखते हुए इसका पुनर्गठन एक बड़ी चुनौती है, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मिलकर पार करना होगा।

डॉ. जयशंकर ने यह बात संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर स्मारक डाक टिकट जारी करते हुए कही। उन्होंने कहा कि आज दुनिया कई जटिल संघर्षों और संकटों का सामना कर रही है, जिनका सीधा प्रभाव मानव जीवन पर पड़ रहा है। विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण के देशों ने इन संकटों की गहरी पीड़ा महसूस की है।
उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र दिवस पर मैं शांति और सुरक्षा के साथ-साथ विकास और समानता के आदर्शों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराना चाहता हूं। भारत हमेशा से संयुक्त राष्ट्र और बहुपक्षवाद (multilateralism) का प्रबल समर्थक रहा है और आगे भी रहेगा।”

विदेश मंत्री ने कहा कि वैश्विक शांति और स्थिरता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता न केवल कूटनीतिक स्तर पर बल्कि वास्तविक कार्यों में भी दिखाई देती है। भारत ने हमेशा विवादों के शांतिपूर्ण समाधान, सहयोगात्मक विकास, और मानवीय मूल्यों की रक्षा का समर्थन किया है।

संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की वकालत करते हुए जयशंकर ने कहा, “यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि संयुक्त राष्ट्र की निर्णय प्रक्रिया आज की वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करती। यह प्रणाली पुरानी प्राथमिकताओं पर आधारित है और न तो सभी सदस्य देशों का संतुलित प्रतिनिधित्व करती है और न ही उभरती शक्तियों को उचित स्थान देती है।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि संयुक्त राष्ट्र की चर्चाएं और बहसें तेज़ी से ध्रुवीकृत होती जा रही हैं, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया और अधिक जटिल हो गई है। कई बार संगठन की कार्यप्रणाली अस्पष्ट और निष्क्रिय प्रतीत होती है। जयशंकर ने कहा कि “अगर कोई सार्थक सुधार नहीं किया गया तो यह संस्था अपने उद्देश्यों से और दूर हो जाएगी।”

अंत में उन्होंने कहा कि विश्व को अब ऐसी सुधार प्रक्रिया की आवश्यकता है जो सभी देशों की आकांक्षाओं को दर्शाए, ताकि संयुक्त राष्ट्र अपनी प्रासंगिकता बनाए रख सके और शांति, विकास व समानता के अपने मूल उद्देश्यों को फिर से सशक्त रूप में स्थापित कर सके।