Ad Image
Ad Image
दिल्ली पुलिस ने साइबर अपराधियों के लिए चलाया साईं हॉक अभियान, 48 घंटे में 800 गिरफ्तार || झारखंड की मंत्री दीपिका पाण्डेय का EC पर हमला, SIR के कारण हारा महागठबंधन || पूर्वी चंपारण के रक्सौल में VIP पार्टी के अनुमंडल प्रमुख की गोली मार हत्या || राष्ट्रपति ट्रंप ने यूक्रेन से शांति समझौते के प्रस्ताव को जल्दी स्वीकार करने का आग्रह किया || ईरान पर अमेरिका की सख्ती, आज नए प्रतिबंधों का किया ऐलान || BJP को 90 पर लीड, JDU को 80 पर लीड, महागठबंधन फेल || नीतीश कुमार CM हैं और आगे भी रहेंगे: जेडीयू की प्रतिक्रिया || NDA को शानदार बढ़त, 198 पर लीड जबकि महागठबंधन को 45 पर लीड || तुर्की : सैन्य विमान दुर्घटना में मृत सभी 20 सैनिकों के शव बरामद || RJD के एम एल सी सुनील सिंह का भड़काऊ बयान, DGP के आदेश पर FIR

The argument in favor of using filler text goes something like this: If you use any real content in the Consulting Process anytime you reach.

  • img
  • img
  • img
  • img
  • img
  • img

Get In Touch

सुप्रीम कोर्ट ने AIMIM की मान्यता रद्द करने की याचिका खारिज की, व्यापक चुनाव सुधारों की दी सलाह

नेशनल डेस्क, श्रेया पांडेय |

सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की राजनीतिक मान्यता रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सोमवार को सुनवाई से इनकार कर दिया। यह याचिका शिवसेना (तेलंगाना) के तिरुपति नरसिम्हा मुरारी द्वारा दाखिल की गई थी, जिसमें पक्षकार का दावा था कि AIMIM केवल मुस्लिम समुदाय के हितों के लिए काम करती है और संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के विरुद्ध है ।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच—जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची—ने मामले को “सुनवाई योग्य” नहीं मानते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसने पहले ही याचिका को खारिज कर दिया था।
बेंच ने यह राय भी व्यक्त की कि केवल एक पार्टी के खिलाफ कार्यवाही करना उचित नहीं होगा, क्योंकि धर्म, जाति या क्षेत्रीयता के आधार पर वोट मांगना एक व्यापक राजनीतिक समस्या है ।

याचिकाकर्ता के वकील, एडवोकेट विष्णु शंकर जैन, ने अदालत में यह तर्क दिया कि AIMIM की संरचना और संविधान इस्लामी शिक्षा और शरीयत कानून को बढ़ावा देने की बात करती है, जो स्पष्ट रूप से मज़हबी राजनीति को प्रेरित करता है और सेक्युलरिज्म के सिद्धांत का उल्लंघन है।
 उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 2017 के अभिराम सिंह फैसले का हवाला भी दिया, जिसमें धर्म, जाति, संप्रदाय या भाषा के आधार पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में रखा गया था।

हालांकि, जस्टिस सूर्यकांत ने जवाब दिया कि पुराने धार्मिक ग्रंथों या शिक्षा के प्रचार में कोई कानूनी दोष नहीं है। यदि चुनाव आयोग ने किसी धार्मिक पक्षपात के तहत पंजीकरण देने में असुविधा महसूस की होती, तो उसके खिलाफ कानूनी मंच मौजूद हैं। 
अदालत ने कहा कि केवल AIMIM ही नहीं, बल्कि कास्ट आधारित और क्षेत्रीय वोट आकर्षित करने वाली कई पार्टियाँ हैं, इसलिए किसी एक के विरुद्ध कारगर परिणाम लाने के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता है ।

न्यायालय ने याचिका खारिज करने के उपरांत याचिकाकर्ता को यह सुविधा दी कि वह एक नयी “लिखित याचिका” दाखिल करें, जिसमें पार्टी पंजीकरण और चुनाव संबंधी सुधारों के व्यापक मुद्दों को उठाया जा सके ।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने मौजूदा याचिका वापस ले ली, लेकिन भविष्य में नए विधिक चेलनियों के लिए अदालत ने अनुमति दे दी ।

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले पर कोई प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन पार्टी ने इसे एक अंतरिक राहत के रूप में स्वागत योग्य बताया। इससे AIMIM को आगामी चुनावों में राजनीतिक वैधता की पुष्टि प्राप्त हुई।

इस निर्णय का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है, क्योंकि इससे यह स्पष्ट हो गया है कि न्यायपालिका धार्मिक और जातिगत राजनीति पर एक सख्त नजर रखती है। साथ ही, अदालत ने यह संदेश भी दिया कि इस तरह की राजनीतिक गतिविधि पर रोक लगाने के लिए व्यापक विधिसम्मत सुधार आवश्यक हैं, न कि केवल एक पार्टी विशेष के खिलाफ कार्रवाई।