
भारत, नीतीश कुमार |
तंबाकू एक ऐसा धीमा ज़हर, जो हर साल दुनिया भर में लाखों जिंदगियाँ लील रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, तंबाकू सेवन के कारण हर साल करीब 80 लाख लोगों की मृत्यु होती है, जिनमें से 12 लाख से अधिक मौतें अकेले भारत में होती हैं। औसतन, हर 4 सेकंड में एक व्यक्ति तंबाकू से जुड़ी किसी न किसी बीमारी का शिकार हो रहा है।
भारत, जो विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तंबाकू उत्पादक देश है, तंबाकू की खपत और इसके दुष्परिणामों से बुरी तरह प्रभावित है। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वेक्षण (GATS-2, 2016-17) के मुताबिक, देश में 28.6% वयस्क (करीब 26 करोड़ लोग) तंबाकू उत्पादों का सेवन करते हैं। इनमें 42.4% पुरुष और 14.2% महिलाएं शामिल हैं। इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि तंबाकू भारत की स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।
तंबाकू सेवन से जुड़े जोखिम केवल कैंसर तक सीमित नहीं हैं। फेफड़ों और मुंह के कैंसर के साथ-साथ यह हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, दृष्टिहीनता और यहां तक कि बांझपन जैसी बीमारियों का प्रमुख कारण है। विशेषज्ञों का कहना है कि तंबाकू में मौजूद निकोटिन और अन्य रसायन न केवल शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करते हैं, बल्कि दीर्घकालिक मानसिक और शारीरिक क्षति पहुंचाते हैं।
तंबाकू के खिलाफ कई सरकारी पहलें चलाई जा रही हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम के तहत निःशुल्क हेल्पलाइन सेवा (1800-11-2356), निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपी (NRT), परामर्श केंद्र और धूम्रपान निषेध अभियान जैसी योजनाएं सक्रिय रूप से लागू की जा रही हैं। इसके अलावा, स्कूलों और कॉलेजों में तंबाकू विरोधी जागरूकता शिविर भी आयोजित किए जा रहे हैं।
आज, जब पूरी दुनिया 31 मई को "विश्व तंबाकू निषेध दिवस" मना रही है, यह हम सभी के लिए आत्ममंथन का समय है। क्या कुछ पल की आदत के लिए हम अपने जीवन, अपने परिवार और समाज की कीमत चुका सकते हैं?
अब नहीं तो कब? आज से ही तंबाकू छोड़ने की शुरुआत करें।
"स्वस्थ जीवन, तंबाकू रहित जीवन" को अपना संकल्प बनाएं।