
विदेश डेस्क, मुस्कान कुमारी |
दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर चीन का नियंत्रण दावा, भारत की प्रतिक्रिया से बढ़ी कूटनीतिक खींचतान
भारत द्वारा तिब्बतियों को धार्मिक स्वतंत्रता देने के समर्थन पर भड़का चीन, दलाई लामा के उत्तराधिकार को बताया “आंतरिक मामला”
नई दिल्ली: भारत में चीन के राजदूत Xu Feihong ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए इसे चीन का “आंतरिक मामला” करार दिया और किसी भी विदेशी हस्तक्षेप की कड़ी निंदा की है। यह बयान भारत की उस टिप्पणी के बाद आया जिसमें भारत ने तिब्बती समुदाय को धार्मिक स्वतंत्रता के तहत अपने नए धार्मिक नेता को चुनने का समर्थन किया था। इस घटनाक्रम ने भारत-चीन के बीच पहले से तनावपूर्ण रिश्तों में नई दरार पैदा कर दी है।
चीन का ऐतिहासिक दावा और कानूनी दृष्टिकोण
राजदूत Xu ने स्पष्ट किया कि दलाई लामा की पुनर्जन्म प्रक्रिया सात शताब्दियों पुरानी धार्मिक परंपरा है, लेकिन अब इसका संचालन चीन के कानूनी ढांचे के अंतर्गत आता है। उन्होंने यह भी कहा कि दलाई लामा स्वयं इस प्रक्रिया को समाप्त करने या जारी रखने का निर्णय नहीं ले सकते, क्योंकि धार्मिक उपाधियाँ और अधिकार चीनी केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपनी बात को जोर देते हुए लिखा,
“दलाई लामा का उत्तराधिकार पूरी तरह चीन का आंतरिक विषय है। इसमें किसी भी बाहरी शक्ति की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
भारत और तिब्बती निर्वासित समुदाय की स्थिति
भारत लंबे समय से तिब्बती शरणार्थियों को धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता देता आया है। धर्मशाला में रह रहे 14वें दलाई लामा के नेतृत्व में तिब्बती निर्वासित सरकार भी यही मांग करती रही है कि उत्तराधिकारी की पहचान धार्मिक प्रक्रियाओं से ही होनी चाहिए, न कि राजनीतिक हस्तक्षेप से। भारत का यह रुख चीन की स्थिति से स्पष्ट रूप से टकराता है।
परंपरा बनाम सत्ता: पुनर्जन्म की राजनीति
तिब्बती बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की अवधारणा एक गहन धार्मिक प्रक्रिया है। परंपरा के अनुसार, दलाई लामा के निधन के बाद उनका पुनर्जन्म ढूंढ़ने के लिए विशेष धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। परंतु हाल के वर्षों में चीन ने इस प्रक्रिया पर नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश की है, और नए नियमों के तहत इसे कानूनी रूप से संचालित करने की बात कही है। तिब्बती नेता इसे धार्मिक हस्तक्षेप और नियंत्रण की कोशिश मानते हैं।
राजनयिक असर और संभावित प्रतिक्रिया
राजदूत का यह तीखा बयान ऐसे समय आया है जब भारत और चीन के बीच पहले से ही सीमा विवाद और अन्य मुद्दों को लेकर तनाव बना हुआ है। अब दलाई लामा का विषय एक और संवेदनशील मोर्चा बन गया है, जिस पर दोनों देशों की भावनात्मक और राजनीतिक स्थिति काफी भिन्न है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अब अपने रुख को और स्पष्टता से रखना होगा — ताकि वह तिब्बती समुदाय के धार्मिक अधिकारों का समर्थन करते हुए चीन के साथ रिश्तों में संतुलन बनाए रख सके।
अंतरराष्ट्रीय नज़रिए से मामला गंभीर
दलाई लामा न केवल तिब्बती लोगों के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर भी शांति, सहिष्णुता और धार्मिक स्वतंत्रता के प्रतीक हैं। उनके उत्तराधिकार की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का राजनीतिक हस्तक्षेप न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक असंतुलन का कारण बन सकता है। अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने पहले भी तिब्बती स्वतंत्रता के पक्ष में आवाज़ उठाई है।
अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि भारत और तिब्बती समुदाय इस चीनी बयान पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं। दलाई लामा स्वयं पहले कह चुके हैं कि वे यह तय करने के हकदार हैं कि पुनर्जन्म की प्रक्रिया जारी रखी जाए या नहीं। वहीं चीन का बढ़ता दखल इस पूरी प्रक्रिया को नई जटिलता की ओर धकेल सकता है।