दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई पर भड़का चीन, अमेरिका को चेताया- 'गलत संदेश भेजने से बचें'

विदेश डेस्क, मुस्कान कुमारी |
तिब्बत पर टिप्पणी को लेकर चीन ने अमेरिका को फटकारा, कहा- 'हमारे आंतरिक मामलों में दखल न दें'
अमेरिका की ओर से दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई दिए जाने पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। बीजिंग ने कहा है कि तिब्बत से जुड़े विषय उसके आंतरिक मामले हैं और अमेरिका को इस पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। यह बयान तब आया जब अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने 14वें दलाई लामा को उनके 90वें जन्मदिन पर शुभकामनाएं दीं।
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने मंगलवार, 8 जुलाई 2025 को जारी एक बयान में दलाई लामा को "धर्म के नाम पर चीन विरोधी गतिविधियों में लिप्त एक राजनीतिक निर्वासित" बताया और कहा कि उन्हें न तो तिब्बती समुदाय का प्रतिनिधित्व करने का हक है और न ही वे तिब्बत के भविष्य का निर्धारण कर सकते हैं।
उत्तराधिकारी विवाद: चीन ने जताया अपना अधिकार
चीन और दलाई लामा के बीच लंबे समय से विवाद का केंद्र रहा है, उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति। हाल ही में दलाई लामा ने घोषणा की थी कि उनके बाद उनके उत्तराधिकारी की पहचान एक स्वतंत्र संस्था द्वारा की जाएगी। चीन ने इस दावे को सीधे तौर पर चुनौती देते हुए कहा कि ऐतिहासिक रूप से यह अधिकार सिर्फ चीन को प्राप्त है। माओ निंग ने दोहराया कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी कौन होगा, यह केवल चीन ही तय करेगा।
चीन ने अमेरिका को चेतावनी दी कि तिब्बत जैसे संवेदनशील मुद्दों पर गैर-ज़रूरी हस्तक्षेप दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुँचा सकता है। साथ ही, उसने तिब्बती स्वतंत्रता समर्थकों को समर्थन देने से परहेज़ करने की नसीहत भी दी।
अमेरिका की प्रतिक्रिया: संस्कृति और अधिकारों की रक्षा का पक्ष
वहीं, अमेरिका का रुख तिब्बतियों की धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान के समर्थन में रहा है। विदेश मंत्री रुबियो ने दलाई लामा की शांति और करुणा की भावना की सराहना की और तिब्बतियों के अधिकारों को सुरक्षित रखने की प्रतिबद्धता दोहराई। साथ ही अमेरिका ने तिब्बती समुदाय के लिए 68 लाख डॉलर की सहायता राशि बहाल करने का ऐलान किया, जिसे ट्रंप शासन के दौरान रोक दिया गया था।
रुबियो ने मई 2025 में 11वें पंचेन लामा गेदुन चोएकी न्यिमा की रिहाई की भी मांग की थी, जिन्हें 1995 में दलाई लामा ने चुना था, लेकिन जल्द ही वे गायब हो गए। चीन ने इसके स्थान पर ग्याल्त्सेन नोरबु को पंचेन लामा घोषित किया, जिसे अधिकतर तिब्बती स्वीकार नहीं करते।
तिब्बत: इतिहास और संघर्ष
1950 में चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण स्थापित किया, जिसके बाद 1959 में दलाई लामा भारत आकर शरण में रहना शुरू कर दिया। तब से वे धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती सरकार के साथ रहते हैं। भारत में उनकी उपस्थिति तिब्बत विवाद को भारत-चीन संबंधों की दृष्टि से और अधिक संवेदनशील बना देती है।
दलाई लामा के नेतृत्व में तिब्बती समुदाय अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को बचाने के लिए संघर्ष करता रहा है, जबकि चीन लगातार तिब्बती बौद्ध धर्म और संस्थानों पर नियंत्रण बढ़ा रहा है, जिसमें धार्मिक नेताओं की नियुक्ति जैसे कदम शामिल हैं।
वैश्विक प्रभाव: रिश्तों में और बढ़ेगा तनाव
तिब्बत को लेकर यह ताजा विवाद चीन और अमेरिका के पहले से तनावपूर्ण संबंधों को और गहरा कर सकता है। व्यापार, मानवाधिकार और तकनीक जैसे मुद्दों के बीच तिब्बत एक और विवाद का विषय बन गया है।
भारत के लिए यह स्थिति और जटिल है, क्योंकि दलाई लामा और तिब्बती शरणार्थी भारत में रह रहे हैं। अमेरिका का समर्थन भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंधों को मजबूत कर सकता है, लेकिन भारत-चीन रिश्तों में दरार को और चौड़ा भी कर सकता है।
विवाद का कोई समाधान नहीं
तिब्बत विवाद धार्मिक स्वतंत्रता, मानवाधिकारों और संप्रभुता के टकराव से जुड़ा है। दलाई लामा के उत्तराधिकारी और तिब्बत की स्वायत्तता को लेकर कोई ठोस हल फिलहाल नजर नहीं आता। दोनों पक्ष अपने-अपने रुख पर अडिग हैं, जिससे भविष्य में और अधिक टकराव की आशंका बनी हुई है।