
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
बांग्लादेश में एक हिंदू स्क्रैप व्यापारी की भीड़ द्वारा की गई क्रूरतापूर्ण हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हिंसक घटना के सिलसिले में अब तक कम से कम सात लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जबकि पुलिस और डिटेक्टिव ब्रांच (DB) की टीमें अन्य आरोपियों की तलाश में लगी हैं। रविवार को इस मामले को लेकर पूरे देश में राष्ट्रीय तलाशी अभियान भी शुरू कर दिया गया।
क्या है मामला?
घटना राजधानी ढाका के मितफोर्ड अस्पताल के पास की है, जहां एक स्क्रैप व्यापारी का व्यवसायिक विवाद इतना बढ़ गया कि कुछ लोगों ने उन्हें घेरकर कंक्रीट के टुकड़ों और डंडों से पीट-पीट कर मार डाला।
सबसे भयावह पहलू तब सामने आया जब पीड़ित की मौत के बाद भी हमलावरों ने उनके शव पर नाचना शुरू कर दिया। इस नृशंस कृत्य का वीडियो वायरल होते ही सोशल मीडिया पर जनता में जबरदस्त आक्रोश फैल गया। देशभर में लोग दोषियों को फांसी देने की मांग कर रहे हैं।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के गृह मामलों के सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) जहांगीर आलम चौधरी ने घटना की निंदा करते हुए कहा:
"मितफोर्ड में हुई यह हत्या अत्यंत दुखद, बर्बर और अमानवीय है। इस तरह की घटनाओं की हमारे समाज में कोई जगह नहीं है। सभी आरोपियों को जल्द सजा दी जाएगी, चाहे उनकी राजनीतिक पहचान कुछ भी हो।"
उन्होंने यह भी पुष्टि की कि डिटेक्टिव ब्रांच ने शनिवार रात दो और आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जिससे अब कुल गिरफ्तारियों की संख्या 7 हो चुकी है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि
घटना के बाद सरकार की कार्रवाई और सार्वजनिक दबाव के चलते शाहबाग स्थित 'प्रोजनमो छत्र' स्मारक को भी रातोंरात ढहा दिया गया। यह स्मारक 2013 में विवादास्पद इस्लामी समूहों के विरोध में हुए प्रदर्शनों का प्रतीक बन चुका था। इस कदम को सरकार की "भीड़ नियंत्रण नीति" से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
जन प्रतिक्रिया और प्रदर्शन
पीड़ित के शव पर नृत्य करते वीडियो के वायरल होने के बाद पूरे बांग्लादेश में प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। ढाका विश्वविद्यालय और अन्य संस्थानों के छात्रों ने सड़कों पर उतरकर हत्या के विरोध में मार्च निकाले।
हिंदू समुदाय और मानवाधिकार संगठनों ने इस घटना को 'सांप्रदायिक हिंसा' बताते हुए तत्काल न्याय की मांग की है।
बांग्लादेश में यह घटना न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता बढ़ाती है। सरकार और प्रशासन की अग्निपरीक्षा की घड़ी है कि वे कितनी तेजी और निष्पक्षता से आरोपियों को न्याय के कठघरे में लाते हैं।
इस घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि भीड़तंत्र और नफरत की राजनीति के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और सामाजिक जागरूकता की बेहद आवश्यकता है।