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बिहार टाक सीजन 5: विकसित बिहार के स्वप्न पर चिंतन और समाधान

स्टेट डेस्क, एन.के. सिंह |

विकास वैभव ने जताई चिंता, स्वार्थी तत्व राष्ट्रीय महापुरुषों को जाति-धर्म में बांट रहे हैं, बिहार के युवाओं से 'जॉब-क्रिएटर' बनकर उद्यमिता से आर्थिक विकास में योगदान देने का किया आह्वान।

बिहार_टाॅक के सीजन 5 में बिहार सरकार के  स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय  की गरिमामयी उपस्थिति में, वक्ताओं ने बिहार के भविष्य और चुनौतियों पर गहन विचार-विमर्श किया। कार्यक्रम की शुरुआत में, वक्ता ने सबसे पहले आयोजक चंदन राज जी को उनके ‘लेट्स इंस्पायर बिहार’ पहल के तहत निरंतर आयोजनों के लिए बधाई दी, यह कहते हुए कि यह मंच बिहार के अतीत, वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं पर विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक उत्कृष्ट मंच बन गया है।

राजनीतिक विभाजन पर चिंता और 2047 के संकल्प पर प्रश्नचिह्न

अपने संबोधन में, विकास वैभव एवं वक्त ने पटना की सड़कों पर लगे होर्डिंग्स को देखकर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आगामी चुनाव के मद्देनजर, अधिकांश होर्डिंग्स ऐसे तत्वों द्वारा लगाए गए थे जो अपने स्वार्थों के लिए समाज को जाति और संप्रदाय के छोटे-छोटे बंधनों में बांटना चाहते थे। दुखद रूप से, इन तत्वों ने अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय महापुरुषों को भी विभिन्न जातियों अथवा संप्रदायों के प्रतिनिधियों के रूप में विभाजित कर दिया था। इस स्थिति पर वक्ता ने मन में उठ रही आशंका को व्यक्त किया कि यदि कुछ स्वार्थी व्यक्ति ही समाज को प्रभावित करते रहे और युवाओं को उचित मार्गदर्शन देने वाले नेतृत्वकर्ता नहीं मिले, तो 2047 तक विकसित भारत के निर्माण का स्वप्न कैसे पूरा होगा।

बिहार के समक्ष गंभीर आर्थिक चुनौतियाँ और विकास की धीमी गति

वक्ता ने सभी से बिहार को विकसित बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए तीव्र गति से आगे बढ़ने का आग्रह किया, क्योंकि राज्य के समक्ष चुनौतियाँ अत्यंत गंभीर हैं। उन्होंने स्मरण कराया कि बिहार की वर्तमान लगभग 14 करोड़ जनसंख्या में से 30 वर्ष से कम आयु के 9 करोड़ से अधिक युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना आसान नहीं है। सरकारी नौकरियों के माध्यम से अधिकतम 1% या कुछ अधिक जनसंख्या को ही लाभ मिल सकता है।
बिहार की आर्थिक चुनौती को समझाते हुए, वक्ता ने बताया कि वर्तमान में बिहार में औसत प्रति व्यक्ति मासिक आय केवल ₹5028 है, जो राष्ट्र में सबसे कम है। तुलनात्मक रूप से, सिक्किम में यह ₹48,979, दिल्ली में ₹38,493, तेलंगाना में ₹29,714, केरल में ₹23,417, महाराष्ट्र में ₹23,134, गुजरात में ₹22,704, और आंध्र प्रदेश में ₹20,207 है।

इस पिछड़ेपन के बावजूद, यह अत्यंत सुखद है कि बिहार का विकास दर वर्तमान मूल्यों पर 14.5% है, जबकि स्थायी मूल्यों पर 9.2% है, जो राष्ट्र में द्वितीय है। वक्ता ने स्वीकार किया कि किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए 5% से अधिक वृद्धि अत्यंत शुभ संकेत है, परंतु बिहार की अर्थव्यवस्था की दुर्दशा आज भी ऐसी है कि यदि 15% की दर से भी हम बढ़ते रहे तो भी 5 वर्ष पश्चात हमारी प्रति व्यक्ति आय मात्र ₹10,000 के आसपास और 10 वर्ष के पश्चात भी मात्र ₹20,000 के आसपास ही होगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 15% की दर पर वृद्धि कितना चुनौतीपूर्ण है, खासकर तब जब समाज जाति-संप्रदाय आदि लघुवादों के खंड-खंड में बंटा हो और राजनीति भी इन्हीं खंडों के समीकरणों पर आधारित हो।

उद्यमिता की क्रांति: बिहार के विकास का मार्ग

वक्ता ने बिहार को विकसित करने के लिए केवल राजनीतिक नहीं अपितु एक व्यापक सामाजिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह अत्यंत आवश्यक है कि हमारे युवा बड़ी संख्या में ‘जॉब-सीकर’ न बनकर ‘जॉब-क्रिएटर’ बनें। उद्यमिता की क्रांति ही हमें विकसित अर्थव्यवस्था का स्वरूप दे सकती है, जिसके लिए बिहार में एक ऐसे इकोसिस्टम का निर्माण करना होगा जिसमें स्टार्ट-अप्स को आवश्यक संसाधन, मार्गदर्शन एवं समर्थन मिल सके।

अंत में, वक्ता ने आशा व्यक्त की कि यदि सकारात्मक ऊर्जा के साथ जाति, संप्रदाय, लिंगभेद आदि लघुवादों से परे उठकर राष्ट्रहित में शिक्षा, समता और उद्यमिता के विकास हेतु मिलकर योगदान किया गया, तो निश्चित ही बिहार को विकसित बनाना संभव है।