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वोटर लिस्ट रिवीजन पर JDU में गहराई बेचैनी

स्टेट डेस्क, वेरोनिका राय |

वोटर लिस्ट रिवीजन पर जेडीयू में गहराई बेचैनी: सांसद के बाद विधायक ने भी उठाए सवाल, प्रवासी मजदूरों के वोट कटने की आशंका..

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) में अंदरूनी चिंता और असहमति की आवाजें तेज होती जा रही हैं। पार्टी के सांसद गिरधारी यादव के बाद अब खगड़िया जिले के परबत्ता से विधायक संजीव कुमार ने भी इस प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

पटना में बुधवार को मीडिया से बातचीत में विधायक संजीव कुमार ने कहा कि वोटर लिस्ट रिवीजन की मौजूदा प्रक्रिया बिहार के उन प्रवासी मजदूरों के लिए बेहद चिंताजनक है जो आजीविका के लिए राज्य से बाहर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "मेरे विधानसभा क्षेत्र में हजारों की संख्या में मजदूर बाहर गए हैं, जिनका कॉन्ट्रैक्ट है कि वे 6 महीने तक छुट्टी नहीं ले सकते। ऐसे में वे घर नहीं आ पा रहे हैं और न ही उनसे संपर्क संभव हो पा रहा है। कई मजदूरों के मोबाइल नंबर भी उपलब्ध नहीं हैं। इससे आशंका है कि उनका नाम मतदाता सूची से काट दिया जाएगा।"

विधायक ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग को प्रवासी मजदूरों के नामों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। उन्होंने मांग की कि ऐसी व्यवस्था हो जिससे मजदूरों का नाम वोटर लिस्ट से न कटे, भले ही वे राज्य से बाहर हों। संजीव कुमार ने यह भी स्पष्ट किया कि वे पार्टी नेतृत्व के रुख से अवगत नहीं हैं, लेकिन यह सच्चाई है कि बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं।

इससे पहले जेडीयू सांसद गिरधारी यादव ने दिल्ली में चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के लिए कम से कम 6 महीने का समय दिया जाना चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि अमेरिका और खाड़ी देशों में रह रहे लोग कैसे एक महीने में दस्तावेज तैयार करके फॉर्म भर सकेंगे? उन्होंने इसे मतदाताओं पर जबरन थोपा गया कदम करार दिया।

गिरधारी यादव ने कहा, "जो लोग विदेश में रहते हैं, उन्हें यह प्रक्रिया अव्यावहारिक लग रही है। आयोग को लचीला रुख अपनाना चाहिए और लोगों को पर्याप्त समय देना चाहिए।"

जेडीयू नेताओं के यह बयान उस वक्त सामने आए हैं जब बिहार में मतदाता सूची रिवीजन को लेकर विपक्ष भी सरकार पर सवाल उठा रहा है। अब सत्ताधारी दल के नेताओं की ओर से उठ रही आवाजों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह मुद्दा केवल राजनीतिक विरोध का नहीं, बल्कि आम मतदाता की चिंता का भी विषय बनता जा रहा है।

अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग जेडीयू नेताओं की इस मांग पर क्या रुख अपनाता है और प्रवासी मजदूरों के मताधिकार की रक्षा के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था करता है या नहीं।