
स्टेट डेस्क, मुस्कान कुमारी |
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: बिहार में SIR के लिए आधार और वोटर आईडी मान्य, ड्राफ्ट मतदाता सूची पर रोक नहीं...
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में विशेष गहन संशोधन (SIR) प्रक्रिया के लिए आधार कार्ड और वोटर आईडी को मान्य दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने का आदेश दिया है। यह फैसला बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया को लेकर आया है, जो नवंबर 2025 तक होने की उम्मीद है। जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने 1 अगस्त, 2025 को ड्राफ्ट मतदाता सूची के प्रकाशन पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर अंतिम फैसला बाद की सुनवाई में होगा, जिसके लिए अगली तारीख 29 जुलाई, 2025 तय की गई है।
ECI को निर्देश: समावेशी मतदाता सूची पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह आधार और वोटर आईडी को SIR प्रक्रिया में स्वीकार करे, क्योंकि इन दस्तावेजों में “प्रामाणिकता की धारणा” है। कोर्ट ने कहा कि इन दस्तावेजों का उपयोग “बड़े पैमाने पर समावेश” को बढ़ावा देने के लिए किया जाना चाहिए, न कि मतदाताओं को बाहर करने के लिए। कोर्ट ने राशन कार्ड जैसे अन्य दस्तावेजों की तुलना में आधार और वोटर आईडी की विश्वसनीयता को रेखांकित किया, जो जालसाजी की आशंका से ग्रस्त हो सकते हैं।
क्यों उठा विवाद?
चुनाव आयोग ने 24 जून, 2025 को बिहार में SIR प्रक्रिया शुरू की थी, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट करना है। इसमें नए मतदाताओं को जोड़ना, मृत या गैर-निवासी मतदाताओं को हटाना और गैर-नागरिकों की संभावित मौजूदगी की जांच शामिल है। लेकिन आयोग ने शुरू में 11 दस्तावेजों की सूची जारी की थी, जिसमें आधार और वोटर आईडी को शामिल नहीं किया गया था। आयोग का तर्क था कि ये दस्तावेज नागरिकता का पर्याप्त सबूत नहीं हैं। इस फैसले का विरोध करते हुए राजद, कांग्रेस और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) जैसे संगठनों ने याचिका दायर की। इनका कहना था कि आधार और वोटर आईडी को बाहर करने से विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों के मतदाताओं का नाम सूची से हट सकता है।
कोर्ट की चिंता: समय और नागरिकता का सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने SIR की समयसीमा पर सवाल उठाए, क्योंकि यह प्रक्रिया चुनाव से ठीक पहले शुरू की गई है। कोर्ट ने कहा कि नागरिकता की जांच मुख्य रूप से गृह मंत्रालय का काम है, न कि चुनाव आयोग का। जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि आयोग को मतदाता सूची को शुद्ध करने और समावेशी बनाने के बीच संतुलन बनाना होगा। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि किसी भी मतदाता का नाम बिना उचित नोटिस और सुनवाई के सूची से न हटाया जाए।
SIR प्रक्रिया का रोडमैप
चुनाव आयोग ने SIR के लिए व्यापक तैयारियां की हैं। 1 अगस्त, 2025 को ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित होगी, जिसके बाद 1 अगस्त से 1 सितंबर तक दावे (नाम जोड़ने के लिए) और आपत्तियां (नाम हटाने के लिए) दर्ज की जाएंगी। अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर, 2025 को जारी होगी। आयोग ने 78,000 से अधिक बूथ-स्तरीय अधिकारियों और आशा कार्यकर्ताओं सहित स्वयंसेवकों को तैनात किया है ताकि प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष हो।
विपक्ष की चिंताएं: क्या होगा मतदाताओं पर असर?
विपक्षी दलों, खासकर राजद नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि SIR प्रक्रिया का दुरुपयोग कुछ समुदायों को निशाना बनाकर उनके मताधिकार को छीनने के लिए किया जा सकता है। आधार और वोटर आईडी जैसे दस्तावेज, जो बिहार के ग्रामीण और गरीब आबादी के बीच व्यापक रूप से उपलब्ध हैं, को शुरू में बाहर करने का फैसला विवाद का केंद्र रहा। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि पासपोर्ट या जन्म प्रमाणपत्र जैसे वैकल्पिक दस्तावेज कई मतदाताओं के पास नहीं हैं, जिससे उनकी वोटिंग की संभावना खतरे में पड़ सकती थी।
कोर्ट का रुख: पारदर्शिता और निष्पक्षता
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 21 जुलाई, 2025 तक याचिकाकर्ताओं की चिंताओं पर जवाब देने के लिए काउंटर-एफिडेविट दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस मामले की गहराई से जांच करेगा, ताकि मतदाता सूची में किसी भी तरह की अनियमितता को रोका जा सके। 29 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई में अंतिम सुनवाई का समय तय होगा।
क्यों है यह फैसला अहम?
बिहार विधानसभा का कार्यकाल नवंबर 2025 में समाप्त हो रहा है, और एक सटीक और समावेशी मतदाता सूची निष्पक्ष चुनाव की रीढ़ है। आधार और वोटर आईडी को मान्य करने का फैसला लाखों मतदाताओं, खासकर उन लोगों के लिए राहत की बात है, जिनके पास अन्य दस्तावेज नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और समावेशिता को मजबूत करता है, साथ ही SIR के दुरुपयोग की आशंकाओं को भी संबोधित करता है।
आगे क्या?
चुनाव आयोग अब ड्राफ्ट मतदाता सूची के प्रकाशन की तैयारी में जुटा है। मतदाताओं को सलाह दी जाती है कि वे अपने नाम की जांच करें और दावे या आपत्तियां समय पर दर्ज करें। यह प्रक्रिया बिहार के चुनावी परिदृश्य को और स्पष्ट करेगी, जो राजनीतिक रूप से हमेशा से संवेदनशील रहा है।