
नेशनल डेस्क, श्रेयांश पराशर |
महाराष्ट्र के मालेगांव में 2008 में हुए धमाके के मामले में अदालत ने 17 साल बाद अपना फैसला सुनाया। सबूतों के अभाव में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर समेत सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया गया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष किसी भी आरोप को साबित नहीं कर सका।
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में रमजान के पवित्र महीने और नवरात्रि से ठीक पहले एक विस्फोट हुआ था। इस धमाके में 6 लोगों की मौत हुई थी और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे। धमाके के बाद पूरे देश में सनसनी फैल गई थी। मामले की जांच पहले एंटी टेररिज्म स्क्वाड (ATS) ने की, लेकिन 2011 में इसे एनआईए (NIA) को सौंप दिया गया।
करीब एक दशक तक चले मुकदमे में अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 34 ने अपने पहले दिए बयान से पलटते हुए आरोपों को कमजोर कर दिया। कोर्ट ने 19 अप्रैल 2025 को इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा था, जो अब 31 जुलाई को सुनाया गया।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि न तो आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस फिंगरप्रिंट या डीएनए साक्ष्य मिले और न ही विस्फोटक सामग्री के भंडारण का प्रमाण मिला। घटनास्थल से कोई खाली खोल या फायरिंग के सबूत भी नहीं मिले। आरोप था कि रDX लाकर उसका इस्तेमाल किया गया, लेकिन यह भी साबित नहीं हो सका।
साध्वी प्रज्ञा के वाहन से संबंधित भी कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया जा सका। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कथित साजिश बैठकों का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं मिला। अंततः, सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया, जिससे इस मामले का 17 साल पुराना अध्याय समाप्त हुआ।