
नेशनल डेस्क, श्रेया पांडेय |
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने जयपुर में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (One Nation, One Election- ONOE) की अवधारणा को भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने इस योजना को राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने वाला कदम करार देते हुए विपक्षी दलों की आलोचना की, जिन्होंने इस विचार का विरोध किया है।
त्रिवेदी ने कहा कि बार-बार चुनाव कराना न केवल देश की आर्थिक संरचना पर बोझ डालता है, बल्कि यह प्रशासनिक व्यवस्था को भी प्रभावित करता है। उन्होंने बताया कि अकेले आम चुनावों की लागत ₹12,000 करोड़ रुपये से अधिक होती है, जबकि राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की लागत जोड़ने पर यह आंकड़ा और भी बढ़ जाता है। उनका मानना है कि अगर एक साथ चुनाव कराए जाएं तो यह खर्च काफी हद तक कम किया जा सकता है और संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है।
उन्होंने इस योजना से संभावित आर्थिक लाभों पर भी प्रकाश डाला। त्रिवेदी ने दावा किया कि "वन नेशन, वन इलेक्शन" प्रणाली को लागू करने से भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में लगभग 1.5% की वृद्धि हो सकती है। उन्होंने कहा कि इस प्रणाली के तहत बार-बार लागू होने वाले आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) के कारण रुकने वाली सरकारी योजनाओं की गति भी बनी रहेगी, जिससे विकास कार्यों में रुकावटें नहीं आएंगी।
भाजपा प्रवक्ता ने विपक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे इस प्रणाली का विरोध सिर्फ *राजनीतिक कारणों* से कर रहे हैं, न कि जनहित को ध्यान में रखते हुए। उन्होंने कहा, "जब देश को एकीकृत दिशा में आगे बढ़ाने की बात आती है, तब कुछ दल केवल अपने क्षेत्रीय स्वार्थों को तवज्जो देते हैं और राष्ट्रीय एकता की भावना को नुकसान पहुंचाते हैं।"
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इस विषय पर राष्ट्रिय स्तर पर बहस होनी चाहिए और सभी राजनीतिक दलों को लोकतांत्रिक भावना के तहत इस पर विचार करना चाहिए। त्रिवेदी के अनुसार, "अगर भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना है, तो हमें अपनी चुनाव प्रणाली को अधिक व्यावहारिक और कुशल बनाना होगा।"
ज्ञात हो कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ योजना का मुख्य उद्देश्य केंद्र और राज्यों के चुनावों को एक साथ कराना है, जिससे शासन प्रणाली में स्थायित्व आए और समय, धन तथा मानव संसाधनों की बचत हो।
भविष्य में इस पर और अधिक चर्चाओं और संसदीय कार्यवाही की संभावना है। भाजपा इसे 2025 के शीतकालीन सत्र में प्रमुख एजेंडे के रूप में पेश करने की तैयारी कर रही है।