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सुबेंदु अधिकारी: बंगाल में करीब एक करोड़ रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुस्लिम वोटर

नेशनल डेस्क, श्रेया पांडेय |

पश्चिम बंगाल में रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुस्लिमों की कथित मौजूदगी को लेकर बीजेपी नेता और विधानसभा में नेता विपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने दावा किया है कि राज्य की मतदाता सूची में लगभग एक करोड़ अवैध घुसपैठिए; जिनमें रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुस्लिम शामिल हैं, वोटर के रूप में दर्ज हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इन वोटरों के साथ-साथ मृतक, डुप्लीकेट और फर्जी नाम भी बड़ी संख्या में सूची में हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता प्रभावित हो रही है। अधिकारी ने चुनाव आयोग से आग्रह किया है कि बिहार की तर्ज पर पश्चिम बंगाल में भी "स्पेशल इंटेंसिव रिविजन" (SIR) की प्रक्रिया लागू की जाए, ताकि मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने तर्क दिया कि यदि बिहार में करीब 50 लाख फर्जी वोटरों को हटाया गया, तो बंगाल में यह संख्या 1.25 करोड़ तक पहुंच सकती है।

शुभेंदु अधिकारी ने यह भी बताया कि सीमावर्ती जिलों जैसे उत्तर और दक्षिण 24 परगना, मुरशिदाबाद, मालदा और बीरभूम में सांप्रदायिक संतुलन तेजी से बदल रहा है। उनका आरोप है कि हाल के दिनों में इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर नए वोटर बनाए गए हैं, जिनमें अधिकांश के पास 25 जुलाई 2025 के बाद जारी किए गए निवास प्रमाण पत्र हैं। उनके मुताबिक, एक सप्ताह में ही करीब 70,000 Form-6 आवेदन चुनाव आयोग को प्राप्त हुए हैं, जो सामान्य औसत से कहीं अधिक है। अधिकारी ने चुनाव आयोग से मांग की है कि इन निवास प्रमाणपत्रों की वैधता की जांच की जाए और इन पर आधारित वोटर पंजीकरण को रद्द किया जाए।

इस आरोप पर तृणमूल कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी प्रवक्ता देबांग्शु भट्टाचार्य ने कहा कि यदि शुभेंदु अधिकारी के पास अवैध वोटरों की सूची है, तो वे उसे चुनाव आयोग को सौंपें। उन्होंने अधिकारी के आंकड़े को "काल्पनिक और सांप्रदायिक राजनीति" पर आधारित बताया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए पूछा कि राज्य में "17 लाख रोहिंग्या" कहां हैं, और इस तरह के बेतुके आरोपों को बंगालियों का अपमान करार दिया। ममता ने यह भी कहा कि बंगाल में बंगला भाषी नागरिकों को इस तरह शक की नजर से देखना अनुचित है।

वहीं, चुनाव आयोग ने फिलहाल इस विषय में कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है, लेकिन वर्ष 2002 के SIR डेटा को सार्वजनिक करते हुए आयोग ने संकेत दिए हैं कि बंगाल में भी SIR प्रक्रिया को लागू किया जा सकता है। आयोग के अनुसार, बंगाल की मतदाता संख्या 2004 में 4.7 करोड़ से बढ़कर 2025 में 7.6 करोड़ हो गई है, जो एक बड़ा उछाल है। SIR के तहत बूथ स्तर पर अधिकारियों द्वारा घर-घर जाकर मतदाताओं की पुष्टि की जाती है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना उचित प्रक्रिया और नोटिस के किसी भी मतदाता का नाम सूची से नहीं हटाया जाएगा।

राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो बीजेपी इस मुद्दे को "राष्ट्रीय सुरक्षा और वोट बैंक की सच्चाई" से जोड़कर देख रही है, जबकि टीएमसी इसे बंगाल की सांप्रदायिक एकता और नागरिक अधिकारों पर हमले के रूप में देखती है। इस विवाद की पृष्ठभूमि में 2026 के विधानसभा चुनाव हैं, जिसके लिए दोनों दल मतदाता सूची को लेकर रणनीति बना रहे हैं। आने वाले समय में चुनाव आयोग का निर्णय और SIR की संभावित प्रक्रिया इस मुद्दे की दिशा तय करेगा।