
नेशनल डेस्क, श्रेया पांडेय।
आम आदमी पार्टी (आप) ने शुक्रवार को भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (INDIA) से औपचारिक रूप से अपना नाता तोड़ने की घोषणा कर दी। यह गठबंधन देश की प्रमुख विपक्षी पार्टियों का एक समूह था, जिसका उद्देश्य था केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के खिलाफ एक मजबूत संयुक्त मोर्चा खड़ा करना।
‘आप’ ने अपने बयान में कहा कि यह गठबंधन न केवल अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रहा है, बल्कि इसमें शामिल दल भी एकजुट होकर काम करने में नाकाम रहे हैं।
पार्टी ने एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “INDIA गठबंधन अपने मूल एजेंडे पर आगे बढ़ने में पूरी तरह असफल रहा है। यह गठबंधन केवल नाम का रह गया है। न तो इसमें कोई रणनीति विकसित की गई और न ही मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया गया। ऐसे में आम आदमी पार्टी के लिए इस गठबंधन में बने रहना व्यर्थ है।”
सूत्रों के अनुसार, आम आदमी पार्टी लंबे समय से गठबंधन के भीतर अपने लिए सम्मानजनक स्थान की मांग कर रही थी। लेकिन पार्टी नेतृत्व को यह महसूस हुआ कि कांग्रेस जैसी बड़ी विपक्षी पार्टियाँ सहयोग की भावना के साथ व्यवहार नहीं कर रही हैं। हाल के लोकसभा चुनावों में सीटों के बंटवारे को लेकर भी ‘आप’ और कांग्रेस के बीच गहरे मतभेद देखने को मिले थे, खासकर पंजाब और दिल्ली में।
पार्टी नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि गठबंधन के कई घटक दल केवल अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति में लगे रहे और साझा कार्यक्रमों को प्राथमिकता नहीं दी गई। बयान में कहा गया, “जब उद्देश्य ही साझा नहीं हो, तो साथ चलने का कोई मतलब नहीं बनता।”
विश्लेषकों का मानना है कि ‘आप’ का यह फैसला राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। दिल्ली और पंजाब में मजबूत पकड़ रखने वाली इस पार्टी के बाहर होने से INDIA गठबंधन को एक बड़ा झटका लग सकता है। गठबंधन पहले से ही आंतरिक मतभेदों और नेतृत्व संकट से जूझ रहा है।
आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी गठबंधन की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। उन्होंने पहले ही यह संकेत दे दिया था कि यदि गठबंधन ठोस कदम नहीं उठाता तो पार्टी को अपने फैसले खुद लेने होंगे।
अब जब आम आदमी पार्टी ने आधिकारिक रूप से गठबंधन से नाता तोड़ लिया है, तो आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी अकेले चुनाव लड़ती है या अन्य विकल्प तलाशती है।
कुल मिलाकर, INDIA गठबंधन के लिए यह एक बड़ा झटका है, और यह निर्णय विपक्ष की एकता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। विपक्षी दलों के सामने अब यह चुनौती है कि वे किस तरह से अपनी एकजुटता को फिर से स्थापित करें और 2029 के चुनावों के लिए कोई ठोस रणनीति तैयार करें।