
नेशनल डेस्क, आकाश अस्थाना ।
मोतिहारी: चंपारण की ऐतिहासिक भूमि पर रविवार को उस वक्त बड़ा राजनीतिक और सामाजिक विवाद खड़ा हो गया जब महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी को तुरकौलिया में आयोजित कार्यक्रम से अपमानजनक तरीके से बाहर कर दिया गया। गांधी जी की विरासत को सम्मान देने हेतु निकाली जा रही ‘गांधी पदयात्रा’ के दौरान यह घटना घटित हुई। पदयात्रा 12 जुलाई से शुरू हुई थी और 13 जुलाई को मोतिहारी के तुरकौलिया पहुँची थी, जहाँ ऐतिहासिक नीम के पेड़ के पास एक सभा आयोजित थी।
मुखिया से हुई तीखी बहस, माइक छीना गया:
जानकारी के अनुसार, जब तुषार गांधी मंच पर आए और उन्होंने अपने संबोधन में सरकार की कुछ नीतियों की आलोचना की, तो स्थानीय मुखिया विनय कुमार साह ने आपत्ति जताई। उन्होंने गांधी परिवार के प्रति कटाक्ष करते हुए मंच पर चढ़कर माइक छीन लिया और तुषार गांधी से कार्यक्रम स्थल छोड़ने को कहा। यह दृश्य देखते ही उपस्थित लोगों में अफरा-तफरी मच गई। सभा में मौजूद कई गणमान्य लोग और गांधी विचारधारा से जुड़े कार्यकर्ता स्तब्ध रह गए।
“यह सिर्फ मेरा नहीं, गांधी जी का अपमान है” – तुषार गांधी
इस घटना के बाद तुषार गांधी ने मंच से उतरते हुए मीडिया से कहा:
“यह सिर्फ मेरा नहीं, गांधी जी की विरासत और विचारों का अपमान है। चंपारण में लोकतंत्र की हत्या हो गई है। जिस धरती पर बापू ने अंग्रेजों से अन्याय के खिलाफ सत्याग्रह किया था, वहां आज सत्ताधारी मानसिकता गांधी विचार को ही निकाल बाहर कर रही है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस घटना से वे विचलित नहीं हैं, बल्कि इससे उनके मिशन को और ऊर्जा मिलेगी।
प्रशासन मौन, आयोजकों ने झाड़ा पल्ला:
घटना के बाद प्रशासन पूरी तरह मौन दिखा। स्थानीय थाना या ब्लॉक प्रशासन की कोई सक्रियता सामने नहीं आई। पदयात्रा के स्थानीय आयोजकों ने भी इस विवाद से दूरी बना ली और कहा कि “यह स्थानीय स्तर का विवाद है, हम इसमें नहीं पड़ना चाहते।”
हालाँकि, कुछ गांधीवादी संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस घटनाक्रम की तीव्र निंदा की है और मुख्यमंत्री से सार्वजनिक माफी की मांग की है।
राजनैतिक हलकों में हलचल:
घटना के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो गया जिसमें मुखिया विनय साह तुषार गांधी को मंच से हटाते दिख रहे हैं। विपक्षी दलों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस नेताओं ने इसे “गांधीवाद पर हमला” बताया है। वहीं भाजपा ने कहा कि “पदयात्रा को राजनीतिक मंच बनाने की कोशिश हो रही थी, जिसका विरोध स्वाभाविक था।”
चंपारण की ऐतिहासिकता और आज का विडंबनात्मक दृश्य:
यह वही तुरकौलिया है, जहाँ 1917 में महात्मा गांधी ने नील किसानों के अधिकारों के लिए आंदोलन छेड़ा था। यह घटना उस ऐतिहासिक संघर्ष की स्मृति में कलंक के समान दर्ज हो रही है। जिस स्थान पर गांधी जी की प्रतिमा लगाकर श्रद्धांजलि दी जाती है, उसी स्थान पर उनके वंशज को बेइज्जती झेलनी पड़ी, यह सोचने पर मजबूर करता है कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी लोकतांत्रिक मर्यादाओं का कितना ह्रास हो चुका है।
यह घटना सिर्फ एक सार्वजनिक बहस या वाद-विवाद नहीं थी, बल्कि यह लोकतांत्रिक असहिष्णुता और राजनीतिक तंत्र की तानाशाही प्रवृत्तियों का सूचक बनकर उभरी है।
क्या चंपारण की यह घटना आने वाले समय में विचारधारा बनाम सत्ता की नई बहस को जन्म देगी? समय बताएगा।