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दलाई लामा को 'भारत रत्न' दीजिए: तापिर गाओ

नेशनल डेस्क, श्रेया पांडेय |

बीजेपी सांसद तापिर गाओ ने लोकसभा में दलाई लामा को 'भारत रत्न' देने की उठाई मांग

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता और अरुणाचल प्रदेश से लोकसभा सांसद तापिर गाओ ने संसद के मानसून सत्र के दौरान तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को भारत रत्न देने की पुरजोर मांग की है। उन्होंने लोकसभा में इस विषय को जोरदार तरीके से उठाया और दलाई लामा के भारत के प्रति योगदान, वैश्विक शांति में उनकी भूमिका और भारतीय संस्कृति के संरक्षण हेतु उनके प्रयासों को आधार बनाते हुए भारत सरकार से आग्रह किया कि उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया जाए।

तापिर गाओ ने अपने भाषण में कहा कि दलाई लामा केवल तिब्बती लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व के लिए शांति, करुणा और अहिंसा के प्रतीक हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जब चीन द्वारा तिब्बत पर अधिकार कर लिया गया था, तब भारत ने दलाई लामा को शरण दी और वे 1959 से ही भारत में रह रहे हैं। गाओ ने कहा, "दलाई लामा न केवल बौद्ध धर्म के एक महान आध्यात्मिक गुरु हैं, बल्कि वे भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रचारक भी हैं। उन्होंने भारत में रहकर बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों को दुनिया भर में फैलाया और आज भारत को बौद्ध धर्म का वैश्विक केंद्र बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है।"

सांसद ने यह भी उल्लेख किया कि दलाई लामा को पहले ही नोबेल शांति पुरस्कार, यू.एस. कांग्रेसनल गोल्ड मेडल, टेम्पलटन प्राइज जैसे कई अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है, परंतु भारत की ओर से उन्हें अभी तक 'भारत रत्न' नहीं मिला है, जो कि उनके योगदान को देखते हुए एक बड़ी कमी है। तापिर गाओ ने यह भी कहा कि भारत को अब यह साहसिक कदम उठाना चाहिए, जिससे विश्व को यह संदेश जाए कि भारत अपने मेहमानों और मित्रों को उचित सम्मान देना जानता है।

इस मांग का कई अन्य सांसदों और बौद्ध समुदाय के नेताओं ने भी समर्थन किया है। सोशल मीडिया पर भी यह विषय तेजी से चर्चा में आ गया है, जहां लोग दलाई लामा के योगदान की सराहना करते हुए उन्हें भारत रत्न देने की मांग कर रहे हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि केंद्र सरकार इस मांग पर गंभीरता से विचार करती है, तो यह भारत-तिब्बत संबंधों को एक नई दिशा दे सकता है, साथ ही यह चीन को भी एक रणनीतिक संदेश देने के रूप में देखा जा सकता है।

गौरतलब है कि दलाई लामा का जन्म तिब्बत में हुआ था और वे 14वें दलाई लामा के रूप में माने जाते हैं। चीन से भागने के बाद वे भारत में शरणार्थी के रूप में रहने लगे और धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश में तिब्बती सरकार-इन-एग्ज़ाइल का मुख्यालय स्थापित किया गया। तब से लेकर आज तक वे भारत में ही निवास कर रहे हैं और आध्यात्मिक एवं सामाजिक स्तर पर उनका योगदान अतुलनीय रहा है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या केंद्र सरकार तापिर गाओ की इस मांग पर विचार करते हुए दलाई लामा को ‘भारत रत्न’ देने का निर्णय लेती है या नहीं।