
बेंगलुरु बना देश का पांचवां सबसे गंदा शहर, स्वच्छ सर्वेक्षण 2025 की रिपोर्ट ने खोली पोल...
भारत की तकनीकी राजधानी के रूप में प्रसिद्ध बेंगलुरु को स्वच्छता के मामले में बुरी तरह फेल होते हुए देखा गया है। स्वच्छ सर्वेक्षण 2025 की रिपोर्ट में बेंगलुरु को 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की श्रेणी में देश का पांचवां सबसे गंदा शहर घोषित किया गया है। यह रैंकिंग न सिर्फ शहर की सफाई व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की बुनियादी ढांचे और शहरी विकास को लेकर की जा रही दावों को भी कठघरे में खड़ा करती है।
स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत हर वर्ष नगर निकायों की सफाई, ठोस कचरा प्रबंधन, नागरिक भागीदारी और नवाचार के आधार पर रैंकिंग की जाती है। इस बार के सर्वेक्षण में बेंगलुरु की स्थिति बेहद निराशाजनक रही। शहर के विभिन्न हिस्सों में ठोस कचरे का सही निस्तारण न होना, खुले में कूड़ा फेंकना, स्वच्छता कर्मचारियों की कमी, और जनभागीदारी की उदासीनता जैसे प्रमुख कारणों ने इसकी रैंकिंग को नीचे गिराया है।
यह स्थिति तब सामने आई है जब राज्य सरकार ने बेंगलुरु के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाएं घोषित की हैं। मेट्रो विस्तार, स्मार्ट रोड्स, बेंगलुरु ग्रोथ मॉनिटरिंग सिस्टम जैसे प्रोजेक्ट्स के माध्यम से शहर को एक आदर्श शहरी केंद्र बनाने की कवायद चल रही है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि बुनियादी जरूरत – स्वच्छता – को ही प्राथमिकता नहीं दी जा रही।
बेंगलुरु नगर निगम (BBMP) पर पहले से ही कचरा निपटान में लापरवाही के आरोप लगते रहे हैं। कई स्थानों पर कचरे का ढेर महीनों तक साफ नहीं किया जाता, जिससे बदबू और मच्छरों का प्रकोप बढ़ता है। साथ ही सड़क किनारे अतिक्रमण, जल निकासी की खराब व्यवस्था और सीवर की नियमित सफाई न होना भी स्वच्छता को प्रभावित करता है।
स्वच्छ सर्वेक्षण में नागरिकों की राय भी एक अहम भूमिका निभाती है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि जन-जागरूकता और नागरिक भागीदारी की भारी कमी के चलते बेंगलुरु के लोगों ने खुद ही अपने शहर की छवि को नुकसान पहुंचाया है।
इसके विपरीत, इंदौर, सूरत और नवी मुंबई जैसे शहरों ने बेहतर कचरा प्रबंधन, टेक्नोलॉजी आधारित निगरानी और जनसहभागिता के माध्यम से देश में शीर्ष स्थान हासिल किए हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह रिपोर्ट कर्नाटक सरकार के लिए एक चेतावनी है। यदि समय रहते सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो शहरी योजनाओं की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा। सरकार को चाहिए कि वह केवल घोषणाएं करने के बजाय जमीनी स्तर पर स्वच्छता को मिशन मोड में लेकर चले और नागरिकों को भी इसके लिए जिम्मेदार बनाए।