
नेशनल डेस्क, ऋषि राज |
"मैं राजा नहीं हूं और राजा बनना भी नहीं चाहता" — राहुल गांधी का बड़ा बयान, सत्ता की राजनीति से जताई दूरी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर सत्ता और पद की राजनीति से खुद को अलग करते हुए स्पष्ट किया है कि उनका मकसद देश की सेवा करना है, न कि ‘राजा’ बनना। सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन में राहुल गांधी ने कहा:"मैं राजा नहीं हूं और न ही राजा बनना चाहता हूं। मेरी लड़ाई विचारधारा की है, सत्ता की नहीं। देश के युवाओं, किसानों, मज़दूरों और कमजोर वर्गों की आवाज़ उठाना ही मेरा उद्देश्य है।”
विपक्षी गठबंधन 'INDIA' के नेतृत्व को लेकर चर्चाएं
राहुल गांधी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ के भीतर अगले लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद के चेहरे को लेकर अटकलें तेज़ हो गई हैं। राहुल गांधी की लोकप्रियता और भारत जोड़ो यात्रा के बाद से बढ़ते जनसमर्थन को देखते हुए कई नेताओं और समर्थकों ने उन्हें संभावित उम्मीदवार के रूप में पेश किया है।
हालांकि, राहुल गांधी ने अपने बयान से यह स्पष्ट कर दिया कि वह किसी पद या प्रतिष्ठा की चाह नहीं रखते। उन्होंने कहा:"मेरे लिए राजनीति का मतलब गद्दी पर बैठना नहीं है, बल्कि सच्चाई, संवैधानिक मूल्यों और आम लोगों की आवाज़ के साथ खड़ा रहना है। मुझे पद नहीं चाहिए, मुझे अपने देश को बचाना है।”
कांग्रेस का समर्थन, भाजपा ने किया कटाक्ष
कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के बयानका समर्थन करते हुए कहा कि यही पार्टी की विचारधारा है — सेवा, समर्पण और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा:"राहुल गांधी का यह बयान बताता है कि वह पद के पीछे नहीं, बल्कि सच्चाई के साथ खड़े होने वाले नेता हैं। देश को आज ऐसे ही नेताओं की ज़रूरत है।”
वहीं, भाजपा ने उनके बयान पर कटाक्ष करते हुए कहा कि राहुल गांधी को कोई प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहता, इसलिए उन्होंने खुद ही इनकार कर दिया। भाजपा प्रवक्ता अमित मालवीय ने कहा:"जो पद पाने की स्थिति में नहीं है, वही ऐसी बातें करता है। राहुल गांधी को जनता ने बार-बार नकारा है, यह उनकी हताशा को दर्शाता है।”
यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने सत्ता से दूरी की बात कही हो। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान और कई अन्य मंचों से वह बार-बार कह चुके हैं कि उनके लिए राजनीति सेवा का माध्यम है। 2024 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से हार और वायनाड से जीत के बाद भी उन्होंने यही दोहराया था कि "मुझे कुर्सी नहीं चाहिए, मुझे देश के युवाओं के भविष्य की चिंता है।"
जनता के बीच संदेश
राहुल गांधी के इस बयान को एक रणनीतिक कदम के रूप में भी देखा जा रहा है। जहां एक तरफ वह भाजपा के 'एक व्यक्ति केंद्रित शासन' की आलोचना करते हैं, वहीं खुद को ‘जन नेता’ और ‘विचारधारा के सैनिक’ के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी यह संदेश देना चाहते हैं कि सत्ता से परे भी एक ऐसी राजनीति संभव है, जो जनता के सरोकारों से जुड़ी हो।
राहुल गांधी का “मैं राजा नहीं हूं और राजा बनना भी नहीं चाहता” वाला बयान आने वाले समय में राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बनेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस नैरेटिव को कैसे आगे बढ़ाती है और क्या यह जनमत को प्रभावित करने में सफल होगा।