
विदेश डेस्क, मुस्कान कुमारी |
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने स्कॉटलैंड के टर्नबेरी रिसॉर्ट में एक ऐतिहासिक फ्रेमवर्क व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए। ट्रम्प ने इसे “अब तक का सबसे बड़ा सौदा” और “दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच समझौता” बताया। इस सौदे का मकसद अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के बीच व्यापार असंतुलन को कम करना, व्यापार युद्ध से बचना और वैश्विक व्यापार में स्थिरता लाना है। लेकिन भारत जैसे देशों के लिए यह सौदा क्या मायने रखता है? आइए, इसकी पूरी कहानी जानते हैं।
15% शुल्क और EU की बड़ी प्रतिबद्धताएँ
इस समझौते के तहत अमेरिका ने अधिकांश EU वस्तुओं पर 15% आयात शुल्क लागू करने का फैसला किया है। यह ट्रम्प की पहले की 30% शुल्क की धमकी से काफी कम है, जिससे EU को बड़ी राहत मिली है। हालांकि, स्टील और एल्युमिनियम पर 50% शुल्क बरकरार रहेगा, जिससे इन क्षेत्रों में कोई बदलाव नहीं हुआ।
EU ने इस सौदे में बड़ी प्रतिबद्धताएँ जताई हैं। उसने अमेरिका में 600 अरब डॉलर का निवेश करने और 600 से 750 अरब डॉलर तक की अमेरिकी ऊर्जा (जैसे LNG) और सैन्य उपकरणों की खरीदारी का वादा किया है। उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने इसे “पारस्परिक लाभकारी” और “स्थिरता लाने वाला” सौदा बताया।
यह समझौता अभी एक फ्रेमवर्क है, जिसे EU के 27 सदस्य देशों से औपचारिक अनुमोदन की जरूरत है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि स्टील और एल्युमिनियम पर उच्च शुल्क इस सौदे को पूरी तरह संतुलित नहीं बनाते।
ट्रम्प का दावा: ‘सभी के लिए अच्छा सौदा’
समझौते की घोषणा के बाद ट्रम्प ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “यह दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच ऐतिहासिक व्यापार समझौता है। EU हमारे वस्त्रों, ऊर्जा और अन्य उत्पादों को खरीदेगा, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बड़ा फायदा होगा।” उन्होंने इसे अपनी “अमेरिका फर्स्ट” नीति की जीत बताया।
EU की निवेश और खरीदारी प्रतिबद्धताओं को ट्रम्प ने अपनी कूटनीतिक सफलता के रूप में पेश किया। उन्होंने कहा कि यह सौदा न केवल अमेरिका बल्कि EU के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि यह व्यापार युद्ध की आशंकाओं को कम करता है।
भारत के लिए चुनौतियाँ और अवसर
यह समझौता मुख्य रूप से अमेरिका और EU के बीच है, लेकिन इसके वैश्विक प्रभाव भारत को भी प्रभावित करेंगे। भारत, जो स्टील और एल्युमिनियम का बड़ा निर्यातक है, पहले से ही अमेरिका के 50% शुल्क का सामना कर रहा है। इस सौदे से इसमें कोई राहत नहीं मिली, जिससे भारतीय निर्यातकों पर दबाव बना रहेगा।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर असर
EU की अमेरिकी ऊर्जा और सैन्य उपकरणों की खरीदारी से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव आएगा। भारत के टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोटिव जैसे क्षेत्रों को EU और अमेरिका में बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। EU अब अमेरिकी उत्पादों को प्राथमिकता दे सकता है, जिससे भारत के निर्यात बाजार प्रभावित हो सकते हैं।
भारत-EU व्यापार समझौते पर नजर
भारत और EU वर्तमान में अपने स्वतंत्र व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत कर रहे हैं। इस नए US-EU सौदे से भारत को EU के साथ अपनी शर्तों को और मजबूत करना होगा। भारत को अपने निर्यात क्षेत्रों में नए अवसर तलाशने और वैश्विक व्यापार नियमों के बदलते परिदृश्य में लचीली रणनीति अपनाने की जरूरत है।
अवसर की तलाश
यदि भारत इस स्थिति का लाभ उठाए, तो वह आपूर्ति श्रृंखला और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है। उदाहरण के लिए, भारत अपनी सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली विनिर्माण क्षमता का उपयोग कर EU और अमेरिका के बीच व्यापारिक सहयोग में हिस्सेदारी बढ़ा सकता है।
वैश्विक प्रतिक्रियाएँ और चुनौतियाँ
EU में इस सौदे को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ हैं। जर्मनी और फ्रांस जैसे देश स्टील और एल्युमिनियम पर 50% शुल्क से नाखुश हैं, क्योंकि यह उनके उद्योगों को प्रभावित करता है। दूसरी ओर, अमेरिका में ट्रम्प समर्थकों ने इसे उनकी व्यापार नीति की बड़ी जीत बताया।
X पर इस सौदे को लेकर चर्चा जोरों पर है। कुछ उपयोगकर्ताओं ने इसे ट्रम्प की कूटनीतिक सफलता माना, तो कुछ ने स्टील और एल्युमिनियम शुल्क को “अधूरा समाधान” बताया। भारत जैसे देशों पर इसके प्रभाव की भी चर्चा हो रही है, खासकर वैश्विक स्टील बाजार के संदर्भ में।
आगे की राह
यह समझौता वैश्विक व्यापार में एक बड़ा कदम है, लेकिन इसकी सफलता EU के सदस्य देशों के अनुमोदन और कार्यान्वयन पर निर्भर करेगी। भारत के लिए यह समय है कि वह अपनी व्यापार रणनीति को और मजबूत करे, ताकि वह वैश्विक बाजार में अपनी स्थिति को बनाए रखे।