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संसद मानसून सत्र में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस को सरकार ने दी मंजूरी

नेशनल डेस्क, मुस्कान कुमारी |

नई दिल्ली: सरकार ने विपक्ष की मांग को स्वीकार करते हुए संसद के मानसून सत्र में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस की अनुमति दे दी है। यह सत्र 21 जुलाई से 12 अगस्त 2025 तक चलेगा, जिसमें 21 बैठकें होंगी। ऑपरेशन सिंदूर, जो 7 मई 2025 को भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर किया गया सैन्य अभियान था, राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के दृष्टिकोण से अहम है। यह अभियान 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम, जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमले का जवाब था, जिसमें 25 पर्यटकों और एक स्थानीय घोड़ा-चालक की मौत हो गई थी। 

विपक्ष की मांग और सरकार का रुख

विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस और इंडिया गठबंधन, ने ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की मांग को जोरदार तरीके से उठाया है। विपक्ष ने इस मुद्दे पर पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता पर बल दिया। 3 जून 2025 को 16 विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष सत्र की मांग की थी। हालांकि, सरकार ने इसे नियमित मानसून सत्र में शामिल करने का फैसला किया। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने 20 जुलाई को कहा कि सरकार ऑपरेशन सिंदूर सहित सभी प्रमुख मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार है। यह बयान रविवार को हुई सर्वदलीय बैठक में भी दोहराया गया, जहां सरकार ने विपक्ष के साथ समन्वय का आश्वासन दिया। 

मानसून सत्र में ऑपरेशन सिंदूर के अलावा पहलगाम हमला, भारत की विदेश नीति और बिहार में मतदाता सूची संशोधन जैसे मुद्दों पर भी चर्चा होने की संभावना है। यह सत्र 21 जुलाई से शुरू होकर 12 अगस्त तक चलेगा, जिसमें 12 से 18 अगस्त तक का अवकाश भी शामिल है। सत्र के दौरान मणिपुर वस्तु एवं सेवा कर (संशोधन) विधेयक, 2025 और कराधान कानून (संशोधन) विधेयक, 2025 जैसे विधेयकों पर भी विचार किया जाएगा। 

ऑपरेशन सिंदूर का महत्व

ऑपरेशन सिंदूर को आतंकवाद के खिलाफ भारत की मजबूत प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है। इस अभियान में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया, और कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए। यह अभियान सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ भारत की रणनीति का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य आतंकी ढांचे को नष्ट करना था, बिना व्यापक सैन्य संघर्ष को बढ़ावा दिए। इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए, संसद में इस पर बहस राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं पर केंद्रित होने की उम्मीद है। 

विपक्ष की एकजुटता और रणनीति

शनिवार को विपक्षी इंडिया गठबंधन की 24 पार्टियों ने एक वर्चुअल बैठक की, जिसमें सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार और उमर अब्दुल्ला जैसे प्रमुख नेता शामिल हुए। इस बैठक में ऑपरेशन सिंदूर, पहलगाम हमला और अन्य मुद्दों को संसद में उठाने की रणनीति बनाई गई। विपक्ष का कहना है कि ऑपरेशन सिंदूर के प्रभाव और इसके बाद की कूटनीतिक स्थिति पर विस्तृत चर्चा जरूरी है। 

संभावित विवाद और संसद की गतिशीलता

ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दौरान राजनीतिक तनाव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अतीत में सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट हवाई हमले जैसे सैन्य अभियानों पर भी राजनीतिक मतभेद देखे गए हैं। कुछ सोशल मीडिया पोस्ट में विपक्ष पर सैन्य कार्रवाइयों पर सवाल उठाने का आरोप लगाया गया है, जो बहस के दौरान विवाद का कारण बन सकता है। फिर भी, सरकार ने सभी मुद्दों पर खुली चर्चा का भरोसा दिलाया है, ताकि संसदीय कार्यवाही सुचारु रूप से चल सके। 

संसद सत्र का व्यापक एजेंडा

मानसून सत्र में ऑपरेशन सिंदूर के अलावा कई अन्य मुद्दे चर्चा के केंद्र में होंगे। पहलगाम हमले ने देश में आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदमों की आवश्यकता को फिर से उजागर किया है। इसके साथ ही, विपक्ष ने डोनाल्ड ट्रम्प के संघर्षविराम संबंधी बयानों और भारत-पाकिस्तान संबंधों में तीसरे पक्ष की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) पर भी विपक्ष का विरोध जारी है, जो आगामी विधानसभा चुनावों से पहले एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। 

सत्र के दौरान सरकार और विपक्ष के बीच संतुलन बनाए रखना एक चुनौती होगी। सरकार ने सर्वदलीय बैठक में सभी दलों को साथ लेकर चलने की बात कही है, लेकिन विपक्ष की एकजुटता और उनके द्वारा उठाए गए संवेदनशील मुद्दों के कारण तीखी बहस की संभावना है। 

आगे की राह

ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में होने वाली चर्चा न केवल भारत की आतंकवाद विरोधी नीतियों को रेखांकित करेगी, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के व्यापक पहलुओं पर भी प्रकाश डालेगी। यह बहस सरकार और विपक्ष के लिए एक अवसर होगी कि वे अपनी स्थिति को स्पष्ट करें और देश के सामने एकजुटता का संदेश दें। सत्र की शुरुआत 21 जुलाई को होगी, और यह देखना दिलचस्प होगा कि यह चर्चा संसद की कार्यवाही को किस दिशा में ले जाती है।